अगर आप मन और दुश्मन के बारे में अंतर जानना चाहते है तो बिल्कुल सही वेबसाइट पर है, इस वेबसाइट Naitikshiksha.com को याद रखे, हम कोशिश करते है की सदाचार से सम्बंधित ज्यादा से ज्यादा जानकारी पोस्ट कर सके। क्युकी सदाचार ही मनुष्य या मानवता का असली धर्म है। तो समझते है मन और दुश्मन में अंतर।
लेकिन मन किसे कहते है? इससे पहले आपको कुछ अन्य जानकरी आपको पता होना चाहिए। इससे आपको पता चल जायेगा कि हमारे शरीर में मन कहां है? मन शरीर में कहाँ रहता है? मन कहां से आता है? या मन के गुण क्या हैं?
सबसे पहले मानव शरीर को समझते है कि कौन कौन से उपकरण अर्थात इन्द्रिय है, जिससे किसी भी धर्म, देश, जाति का मनुष्य कोई ज्ञान या जानकारी प्राप्त करता है, वे है ।
हम सिर्फ पांच ज्ञानेंद्रियां के बारे में समझते है ये है -
- आंख - किसी विषयवस्तु को देखकर जानकारी या ज्ञान प्राप्त करना।
- कान - किसी विषयवस्तु को सुनकर जानकारी या ज्ञान प्राप्त करना।
- नाक - किसी विषयवस्तु को सूंघकर जानकारी या ज्ञान प्राप्त करना।
- जीभ - किसी विषयवस्तु को चखकर जानकारी या ज्ञान प्राप्त करना।
- और त्वचा- किसी विषयवस्तु को स्पर्श करके जानकारी या ज्ञान प्राप्त करना।
फिर इनका मन के साथ कैसे सम्बन्ध है?
वो ऐसे
जब हम किसी भी ज्ञानेंद्रियां का इस्तेमाल लगातार किसी विषयवस्तु के साथ इस्तेमाल करते है तो बुद्धि का उस विषयवस्तु से लगाव या मोह हो जाता है। इस लगाव को मन कहते है।
फिर धीरे-धीरे यही मन जब किसी व्यक्ति की बुद्धि पर हावी हो जाता है या बुद्धि को ढक लेता है, तो यह मन उसी व्यक्ति के स्वयं का दुश्मन बन जाता है। जैसे -
- आंख - गलत देखना।
- कान - गलत सुनना।
- नाक - गलत सूंघना।
- जीभ - गलत खाना या गलत पीना।
- और त्वचा - गलत स्पर्श करना।
ऐसा व्यक्ति स्वयं के अंदर इन कमियों को कभी नहीं देखता, क्युकी वह इन्हे प्रतिदिन की वृति बना लेता है। और तो और वह स्वयं अन्य मनुष्यों में इन्ही कमियों या अवगुणों को देखकर उसे अपना दुश्मन समझने लगता है। वह अपनी वृत्ति को Life में Enjoy करना समझता है, आगे चलकर ऐसे मनुष्य का अपने घर, परिवार, या समाज से पतन हो जाता है।
इसलिए व्यक्ति को संगति सोच समझकर करनी चाहिए। क्युकी जिन्हे वह दोस्त या मित्र मंडली समझता है वही उसकी सात्विक बुध्दि को बहकाकर Life का आनंद लेने के लिए, Enjoy करने को प्रेरित करते है।
धीरे-धीरे वे व्यक्ति के प्रवत्ति बन जाते है, और उस व्यक्ति को अपने जीवन में इस अतिक्रमण के बारे में पता भी नहीं चलता।
इसलिए किसी मनुष्य का मन ही उसका स्वयं का दुश्मन है। दोनों में कोई ज्यादा अंतर नहीं है।
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