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अहिंसा ही मानव नैतिकता का परम गुण है कैसे ?

सब जीव जीना चाहते हैं, मरना कोई नहीं चाहता।  सभी प्राणियों को अपनी आयु प्रिय है, सुख अनुकूल है, दु:ख प्रतिकूल है। जो व्यक्ति हरी वनस्पति व उसमे रहने वालो जीवो का अधिकार छीनता है वह अपनी आत्मा को दंड देनेवाला है। वह दूसरे प्राणियों का हनन करके परमार्थत: अपनी आत्मा का ही हनन करता है। non-violence the ultimate quality of human morality

सरल रूप में समझे तो इस प्रकृति का प्रत्येक जीव भगवान् ने बनाया है। भगवान् सर्व शक्तिमान और अनंत ब्राह्मण से भी अनंत है। जीव हत्या के द्वारा हम उस जीव के जीने का अधिकार छीनते है। एक अच्छा भगवान् का सेवक या भक्त कभी भी ऐसा कार्य नहीं करेगा। 

उदाहरण के लिए जब राजा रहूगण ने महात्मा जड़भरत को अपनी पालकी में लगाया तो वो चलते समय एक वाण दुरी के हिसाब से अपने पग जमीन पर रख रहे थे, ताकि कोई जीव उनके पैर के नीचे न आ जाए।  

पूरी कहानी यहाँ से पढ़े। 

हिंसा से पाप या पुण्य -

आपको हिंसा से पाप अर्थात बुरा परिणाम मिलेगा या पुण्य अर्थात अच्छा परिणाम मिलेगा इसके लिए आपको श्रीमद भगवत गीता में भगवान् श्री कृष्ण के द्वारा बताई गए निष्काम कर्म की व्याख्या को समझना होगा। जहाँ भगवान् श्री कृष्ण अर्जुन को भिन्न भिन्न उदाहरण देकर निष्काम कर्म का महत्त्व और उससे मिलने वाला परिणाम (पाप या पुण्य) का महत्त्व बताते है। 

यह वृतांत यहाँ से पढ़े। 

हिंसा से कुछ धर्म बिल्कुल दूर है तो कुछ बिलकुल पास।  जैसे जैन, हिन्दू, बौद्ध  धर्म हिंसा न करने को महत्त्व देते है। 

non-violence the ultimate quality of human morality
यह गौतम बुद्ध की कहानी सभी ने पढ़ी या सुनी होगी। हिंसा की हार और अहिंसा की जीत होती है। अर्थात मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है बताया गया है। 


हिन्दू शास्त्र कभी भी स्वार्थ के लिए हिंसा अर्थात मांस भक्षण का साथ नहीं देते है वे हमेशा उनके विरोध में रहे है। इसलिए स्वार्थी मनुष्य सिर्फ मांस खाने हेतु धर्म परिवर्तन का शिकार हो जाते है। 

कोई भी धर्म जीव हत्या को सही नहीं ठहरा सकता। आप उस धर्म के तत्व ज्ञानी से इस बात पर विचार विमर्श कर सकते है। 

इसलिए मन, वचन और कर्म से न हिंसा करनी चाहिए और करने वालो का साथ देना चाहिए और न ही हिंसा से ऊपजे फल का सेवन करना चाहिए। अहिंसा मनुष्य का परम धर्म है अर्थात पहला धर्म या पहला कर्तव्य या पहला कर्म है। 

शास्त्रों की दृष्टि से "अहिंसा" का अर्थ है मन, वचन और कर्म (मनसा, वाचा और कर्मणा) से सब प्राणियों के साथ द्रोह का अभाव। (अंहिसा सर्वथा सर्वदा सर्वभूतानामनभिद्रोह: - व्यासभाष्य, योगसूत्र 2।30)

 महाभारत में योगेश्वर श्री कृष्ण के द्वारा बोला गया यह श्लोक 

"अहिंसा परमो धर्म:

धर्म हिंसा तथैव च ।

इसका सरल अर्थ - अहिंसा सबसे सुंदर और महान धर्म है. सत्य धर्म या मानवता या आत्मरक्षा या देश या प्रकृति की रक्षा के लिए की जाने वाली हिंसा, हिंसा की श्रेणी में नहीं आती.


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