अगर आप भारत में पैदा हुए है तो भारत हमारी मातृभूमि है। पैदा होने के बाद आप इसी भूमि पर गिर गिर कर चलना सीखते है, इस भूमि का अन्न एवं जल ग्रहण करते है इसलिए ये हमारी मातृभूमि है क्युकी इस भूमि ने हमारी देखभाल एक माता की तरह की है इसलिए इस भूमि का हम आदर अपनी माता के समान करते है।
और माता के बराबर आदर से निहित इस भारत भूमि को हम नमन करते है और शृद्धा भाव से भारत माता की जय बोलते है।
यह हमारी मां के समान है और हमें प्राण से भी प्रिय है। हमें अपने भारत पर गर्व है। क्युकी ये हमारी मातृभूमि है।
यहाँ मातृभूमि का अर्थ इस प्रकार है -
- मातृ अर्थात माता या माता के समान
- भूमि अर्थात पृथ्वी का वो हिस्सा या तल या जगह, गांव, शहर या देश, जहाँ हमारा जन्म हुआ
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भारत माता की जय हर भारतीय कृतज्ञ होने के कारण बोलता है। जिसमे मन में अपनी देश के मिटटी के प्रति कृतज्ञनता या आदर का भाव है वो भारत माता की जय दिल से और दिमाग से बोलता है। कुछ यूरोपीय देशों में मातृभूमि को पितृभूमि कहते हैं। जिस देश में हम पैदा हुए है उसकी जय बोलना किसी अन्य धर्म को स्वीकारने जैसा नहीं है। किसी भी धर्म का व्यक्ति अपनी भाषा में जय की जगह किसी भी तरह से सम्मान दे सकता है। देश के प्रति प्यार और भावना को आप किसी भी भाषा में बोल और बता सकते है। अगर कोई जय भी बोलता है या वंदना करता है, तो वह पूजा नहीं कही जा सकती, बल्कि सम्मान और प्रेम है।
उदाहरण के लिए -
एक हिन्दू परिवार से कोई व्यक्ति कही शुभ काम करने जाता है या शुभ काम करता है तो उस व्यक्ति की मां अपने बेटे की आरती उतारती है, तिलक लगाती है तो क्या वो उसकी पूजा कर रही है, नहीं, ना वह सम्मान और प्रेम करने का उच्च कोटि का तरीका है।
और यह सम्मान और प्रेम इस धरती और प्रकृति की प्रत्येक चीज़ के प्रति होता है जैसे उच्च कोटि का दूध देने वाली गाय, प्यास बुझाने वाला कुआँ, तालाब या नदी, अन्न देने वाले खेत, रौशनी देने वाला सूर्य, रात में रौशनी करने वाला चन्द्रमा, इसी तरह से सम्मान और प्रेम के अधिकारी वायु, अग्नि, खेत, औजार, अन्न व् अन्य प्राकृतिक चीज़े भी होती है।
इस पृथ्वी गृह की रचना निश्चित ही ईश्वर ने की है। तो हम ईश्वर की बनायीं हुयी पृथ्वी का सम्मान और रक्षा क्यों न करे, विशेषकर से वो भूभाग या देश जिसमे हमारा जन्म हुआ और हमारे पुरखे इसकी रक्षा में डटे रहे। उन्होंने न धर्म बदला और न गरीबी से घबड़ाये। अगर ऐसा न होता तो सारे भारतीयों का एक ही धर्म होता। लेकिन संयम से देशभक्ति दिखाई क्युकी उन्हें अपने ईश्वर पर श्रद्धा और विश्वास था।
हालाँकि बहुत कम अर्थात चंद लोगो को लगता है की "भारत माता की जय का उच्चारण न करना देशद्रोह नहीं होता है,उनको अधिकार है कि वे नारा लगा भी सकते हैं और नहीं भी।"
बिलकुल वे मातृभूमि या देश को माता की तरह सम्मान दे या न दे ये उनका अधिकार है। मतलब अपने देश का सम्मान न करना उनके अधिकार में आता है, लेकिन जो सम्मान करता है, उसकी भावनाओं को स्वयं कोई सम्मान नहीं मिलता, इन्हे रूढ़िवादी कहा जाता है। लेकिन जो अपनी मातृभूमि से प्रेम करता है उसके लिए रूढ़िवादी शब्द भी सम्मान का प्रतीक लगता है।
जो दूसरों को रूढ़िवादी कहते है वे कभी कभी अपने अधिकार के लिए (अपने मातृभूमि की सम्पति) जला डालते है.
क्या ये ही लोग काफिर है? क्या पता। उनके अंदर का द्वेष किसी धर्म को मानने पर आया है या नास्तिक बनने पर ये तो सिर्फ ईश्वर को पता होगा। लेकिन वे लोग भी मनुष्य है जिस दिन अपने बारे में जानेगे अर्थात आत्मज्ञान होगा तब उनको भी रूढ़िवादी कहलवाने में शर्म नहीं, गर्व का अनुभव होगा।
आप इन्हे छोड़िये। और शृद्धा भाव से इस ईश्वर की बनायीं पृथ्वी के भूभाग भारत की जय बोलिये। कहिये विश्व का कल्याण हो और सभी प्राणियों में सद्भावना हो। भारत माता की जय।
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