राष्ट्रवाद एक विचार या भाव है जो राष्ट्र (एक देश) को महत्व देती है। राष्ट्र का अर्थ होता है कि उस भूभाग पर रहने वाले सभी व्यक्तियों की स्वाधीनता, सुरक्षा, संप्रभुता, और उत्कृष्टता को प्राथमिकता देना होता है।
राष्ट्रवाद के अनुसार, राष्ट्र के लोगों के बीच अच्छे संबंध, आपसी समझ, सुरक्षा, आत्मरक्षा, सहायता, अधिकारों की समानता और साझा मूल्यों का प्रसार होना चाहिए। राष्ट्रवाद का मूल मंत्र "एकता और स्वाभिमान" है, जिसका अर्थ होता है कि एक राष्ट्र में लोगों को एकजुट होना चाहिए और उन्हें अपने राष्ट्र के प्रति गर्व महसूस करना चाहिए।
राष्ट्रवाद के प्रमुख लक्ष्य में शामिल होते हैं -
- राष्ट्रीय आत्मनिर्भरता
- अर्थव्यवस्था का विकास
- सामाजिक और सांस्कृतिक समृद्धि
- सभी नागरिकों के अधिकारों की समानता
राष्ट्रवादिता का जन्म -
राष्ट्र की संस्कृति की इकाई कुल की अर्थात परिवार की संस्कृति होती है, इसलिए देखा जाता रहा है कि जो परिवार अपनी संस्कृति को महत्त्व नहीं देते है उनकी संतति राष्ट्र को भी उतना महत्त्व नहीं दे पाती है अंततः वह संतति आगे चलकर नकारात्मक विचार को ही अपनी विचारधारा का नाम देते है, मानो वह नकारात्मक विचारधारा उनकी संस्कृति से बड़ी हो। उनकी नकारात्मक विचारधारा का जन्म राष्ट्र से ज्यादा स्वार्थ को मानने के कारण होती है। उस स्वार्थ की उत्पत्ति का कारण अल्पज्ञान और लालच होता है।
भगवान् की स्वयं की वाणी श्रीमदभगवद गीता में भी प्रमुख रूप से राष्ट्र धर्म की ही शिक्षा दी गई है । अर्थात भगवान ने स्वयं बताया है कि व्यक्ति का राष्ट्र के प्रति क्या धर्म होना चाहिए? कौन से गुण होने चाहिए जिससे वह राष्ट्र का निर्माण, निर्वाह और सुरक्षा कर सके ।
राष्ट्रधर्म के लिए आवश्यक है कि व्यक्ति में राष्ट्रवादिता , पराक्रमशीलता, पारदर्शिता , दूरदर्शिता , मानवता , अध्यात्म , निस्वार्थ प्रेम, आत्मरक्षा और विनयशीलता जैसे गुण हों । श्रीगीता में इन्हीं तत्वों को विकसित करने का ज्ञान दिया गया है । इसलिए व्यक्ति के हृदय में भी धर्म और तत्वज्ञान की मांग तभी होगी जब उसमें राष्ट्र के प्रति प्रेम होगा और अपने वह उसके प्रति कर्तव्य का अनुभव करेगा । इस प्रकार श्रीमदभगवद गीता के प्रथम अध्याय से ही राष्ट्र के प्रति समपर्ण दर्शाया गया है । इसलिए श्रीमद भगवद गीता, अन्य भावों के साथ साथ राष्ट्रवाद के भाव की भी जननी है।
नोट: लेखक के अंदर राष्ट्रवाद के भाव की उत्पत्ति श्रीमद भगवद गीता के द्वारा ही हुयी है। यह स्वयं का व्यक्तिगत विचार है। क्युकी अपने देश से ज्यादा किसी अन्य देश के विदेशी लेखकों को अपनी संस्कृति से ज्यादा महत्त्व देना शुध्द राष्ट्रवाद नहीं कहा जा सकता है।
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