मृगतृष्णा का शाब्दिक अर्थ हैं, हिरन की प्यास : मृगतृष्णा। जहाँ मृग अर्थात हिरन और तृष्णा अर्थात प्यास
मृग-मरीचिका; तेज़ धूप और गरमी में रेगिस्तानी क्षेत्र में किसी किसी तालाब या जलधारा का दिखना
मृग मरीचिका या मृगतृष्णा एक-दूसरे का पर्याय है।
मृगतृष्णा के लिए दो उदाहरण काफी प्रचलित है।
पहला उदाहरण -
जब अत्यधिक गर्मी पड़ती है तो सूर्य की किरणों के पूर्ण आन्तरिक परावर्तन के कारण दूर जहां पानी नही होता है वहां पानी दिखने लगता है और हिरन इस भुलावे में आकर उधर पानी के लिए भागने लगता है, पर वहां पानी नही होता है।
दूसरा उदाहरण -
कस्तूरी मृग हमेशा एक सुगंध की खोज में रहता है। वो चारो ओर उसका जीवन प्रयन्त ढूढता रहता है लेकिन वास्तविकता यहं है की वह सुगंध उसकी नाभि में होती है।
मृगतृष्णा का कारण -
गर्मी के दिनों में रेत बहुत अधिक गर्म हो जाती है जिसके कारण रेत के पास वाली वायु भी गर्म हो जाती है इससे रेत के पास वायु (परत) का घनत्व बहुत कम हो जाता है और यह वायु (परत) विरल माध्यम की भाँती व्यवहार करती है। ऊपरी परत अपेक्षकृत ठंडी होती है जिससे इसका घनत्व अधिक होता है और यह वायु (परत) सघन माध्यम की तरह व्यवहार करती है।
उदाहरण के लिए -
जब कोई प्रकाश किरण चलती है तो वह अधिक घनत्व वाली वायु से अर्थात सघन माध्यम से विरल माध्यम में गमन करती है जिसके कारण पूर्ण आन्तरिक परावर्तन की घटना घटित होती है जिससे रोड पर कार का उल्टा प्रतिबिम्ब बना हुआ प्रतीत होता है। और जब कोई इसे दूर से देखता है तो ऐसा लगता है की वहाँ पानी या जलाशय है जिसके कारण उसमे रोड पर कार का प्रतिबिम्ब बन रहा है और उन्हें परिचिका का भ्रम हो जाता है।
मृगतृष्णा शब्द का प्रयोग हमारे पुराणों में कई जगह किया गया है। इसका तात्त्पर्य यह हैं की, हम पूरी जिंदगी सुख की खोज में घूमते रहते है। लेकिन सुख तो हमारे अंदर ही है। आप चाहे तो किसी भी दुखी मनुष्य का साथ देकर खुद भी प्रसन्न हो सकते है। जिसे निस्वार्थ सेवा कहा गया है।
0 टिप्पणियाँ