To Get the Latest Updates, Do not forget to Subscribe to Us

कृतज्ञता का अर्थ क्या है? - Gratitude


कृतज्ञता -


कृतज्ञता क्या होता है क्या आपने कभी इसे समझने की कोशिश की है, आज इस युग में लोग कृतज्ञता प्रकट तो करते है लेकिन सिर्फ "Thanks" के रूप। क्या धन्यवाद मात्र  कहने से कृतज्ञता प्रकट हो जाती है। या कुछ और है। आज हम कृतज्ञता को समझने की कोशिश करेंगे। 

कृतज्ञता का अर्थ -

कृतज्ञता, प्रत्येक विशेष मनुष्य का महान गुण होता है। यहाँ विशेष मनुष्य उस व्यक्ति को कहा जाता है जो वास्तव में इसे समझता है। अपनी वाणी से कृतज्ञता प्रकट करना और आत्मा से अपने आप को समर्पित करना दोनों भिन्न हो सकती है। लेकिन वास्तव में अपनी आत्मा और ह्रदय से समपर्ण करना ही कृतज्ञता प्रकट करना होता है, जिसे वाणी के द्वारा ही प्रकट किया जाता है। और वचन दिया जाता है। की हम आपके कृतज्ञ है, और इस जीवन में प्रभु ने कोई भी अवसर दिया तो इस वचन का पालन अवश्य करेंगे। 

वेदो में कृतज्ञता का वर्णन -

वेदो में कृतज्ञता को परिभाषित करने के लिए भिन्न भिन्न उदाहरण के द्वारा मानव को समझाया गया है। जैसे -
मनुष्य देवी देवताओ की पूजा करता है, जिससे देवताओ को शक्ति मिलती है, उसके बदले में देवता भी कृतज्ञ होकर मनुष्य के सुख दुःख में साथ खड़े रहते है। 
जैसे 
श्री राम की सहायता करोड़ो बनारो ने की थी, जब युद्ध ख़त्म हुआ, रावण का उद्दार हुआ उसके बाद श्री राम ने सब वानर सेना के प्रति कृतज्ञ हुए और सभी को गोलोक और मोक्ष की प्राप्ति हुयी। 

वैदिक काल में कृतज्ञता का वर्णन -

वैदिक काल में जब वेदो की रचना हो रही थी, तब गुरुओ ने सबसे ज्यादा कृतज्ञता प्रकृति के प्रति दिखाने पर ज्यादा बल दिया। इसलिए हमें नदियों, वृक्षों, पहाड़ो, पत्थरो, सूर्य, चंद्र, वायु, खेत, अन्न आदि की वंदना सिखाई गयी। क्युकी मनुष्य जितनी तेज़ी से किसी भी वस्तृ विशेष का दोहन करता है, उतना वापस नहीं करता और वो ऋणी हो जाता है। ऋणी व्यक्ति या मनुष्य कभी किसी का भला नहीं कर सकता और इससे कुछ राहत पाने के लिए कृतज्ञता का विशेष महत्व है। 
What is (Gratitude) in Hindi

आज कृतज्ञता कहाँ पर है -

सबसे पहली बात की आज लोग निस्वार्थ भाव से सहायता करते नहीं है। कुछ करते भी है तो हम उनको एक Thanks बोलकर हिसाब किताब बराबर कर लेते है। इससे सहायता करने वाला तो अपने धर्म का पालन कर लेता है, पर सहायता प्राप्त करने वाला कभी भी अपनी कृतज्ञता को Thanks या धन्यवाद की आड़ में बराबर नहीं कर सकता। कृतज्ञता प्रकट करने के लिए आपको आत्मा से वचन देना होता है की जब भी कभी मुझे भी अवसर मिलेगा तो में आपकी या आपके जैसे किसी भी व्यक्ति की कैसे भी सहायता करूँगा, उसके बाद धन्यवाद बोल सकते है। और ये तब तक बराबर नहीं होती जब तक आप अपने वचन का पालन नहीं कर लेते है। 

अर्थात अब आपको स्पष्ट रूप से समझ आ गया होगा की कृतज्ञता वो डोर है जो मनुष्य को उसके वचन के रूप में निस्वार्थ भाव से एक सम्बन्ध स्थापित करती है। इसलिए ये मानवता का बहुत ही विशेष गुण है जिसका पालन करना अनिवार्य है।

कृतज्ञता अर्थात अपने प्रति की हुई श्रेष्ठ और उत्कृष्ट सहायता के लिए श्रद्धावान होकर दूसरे व्यक्ति के समक्ष सम्मान प्रदान करना और मन ही मन एक वचन लेना। 

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ