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संयम क्या है? एक युद्ध अपने ही विरुद्ध ? - Self Control

धैर्य / संयम क्या है? एक युद्ध अपने ही विरुद्ध ? नहीं, जाने इसके अर्थ, प्रकार या आशय -

संयम हर व्यक्ति का वो आभूषण है जिसकी चमक व्यक्ति के जीवित रहने से लेकर उसके मरने के बाद तक रहती है। संयम को हर व्यक्ति के लिए सांसारिक भोग और सम्पूर्ण त्याग के मध्य का भाग कह सकते है। 
यह अपने ही खिलाफ युद्द नहीं होता, बल्कि यह एक सिर्फ साधारण सा नियम पालन है, जिसे किसी भी मूल्य पर न तोडा जाये। । इस नियम का जितने बार पालन करेंगे उतने बार आपको परमशान्ति और सुख की प्राप्ति होती है। आध्यात्मिक दृष्टि से संयम आत्मा प्रमुख का गुण है। इसे आत्मा का एक सहज स्वभाव माना गया है।

मानव जीवन में ऐसे कई नियम है जिनके द्वारा मानवीय जीवन को सुखद बनाया जा सकता है। लेकिन प्रेम से, सुखद चित्त होकर नियम पालन करने पर।

संयम जिनके पास नहीं होता ?

जिनके पास संयम नहीं होता है वो जीवन पर्यन्त अपनी इन्द्रियों / इच्छाओं के गुलाम बने रहते है और उन्ही को संतुष्ट करने में लगे रहते है। लेकिन इच्छाओं की पूर्ति कभी भी संभव नहीं होती। इन्द्रियों की भूख नित्य बढ़ती ही रहती है, इस प्रकार मनुष्य इन्द्रियों का गुलाम बनकर अपने जीवन का बहुमूल्य समय बर्वाद करता रहता है। संयम से रहित इंद्रिय या इच्छा उस व्यक्ति एवं समाज को हमेशा पतन की ओर अग्रसर करती है।

संयम क्या है? एक युद्ध अपने ही विरुद्ध ? नहीं, जाने अर्थ, प्रकार या आशय - Sanyam in Hindi

तो क्या इच्छाओं का दमन करना ही संयम है?

नहीं, नास्तिक व्यक्ति हमेशा समाज को अपने झूट के कुचक्र में उलझाने में लगा रहता है। क्युकी वो खुद झूठ की दुनियां में रहकर अपने आप को ज्ञानी समझता है। संयम और दमन में दोनों ही शब्दों और उनके कर्मो में बहुत बड़ा अन्तर है। संयम में नियंत्रण है, एक मर्यादा है, एक निश्चित भावना है। जबकि दमन का अर्थ दबाना है। बहुत सी साधनाओं में साधक द्वारा अपनी वृत्तियों को दबाने के बजाय नियंत्रित करने को कहा जाता है। 
उदाहरण के लिए -
एक विद्यार्थी को सदैव अपने भोजन करने की आदत में नियंत्रण या संयम की आवश्यकता होती है। क्युकी ज्यादा खाने से उसे आलस घेरेगा जो उसकी पढाई और एकाग्र चित्त को नष्ट करेगा। 
यहाँ संयम करना आवश्यक है। 
किन्तु भोजन का त्याग करना अपनी इच्छाओं और इन्द्रियों अर्थात भूख का दमन करना गलत है। विद्यार्थी दमन को अपनाकर भी अपनी बुद्धि को एक चित्त नहीं कर सकता। 

इन शब्दों की जटिल परिभाषा हो सकती हैं परन्तु आम जीवन में कैसे महसूस होती हैं,

आत्मनियंत्रण - 

आत्मनियंत्रण किसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए प्रदर्शित की गई भावना, कामना और व्यवहार पर नियंत्रण की क्षमता है। मनो-विज्ञान में इसे स्वनियंत्रण भी कहा गया है। हम साधारण जीवन में आत्मनियंत्रण को इन तीन तरह से ज्यादा पाते है। 

सहनशीलता -

जैसे ही आप पानी पीने चले, कोई आया वो आपकी बोतल से पानी पीकर चला गया।  आप प्यासे रह गए। इसके बाद भी आपका चित्त शांत रहता है। न व्यक्ति के बारे में बुरा सोचते है। और न अपने भाग्य के बारे में।  यही सहनशीलता है। 

संयम -

किसी चीज के उपलब्ध होने पर भी सिर्फ अपने नियमों के पालन हेतु उसका उपभोग नहीं करना संयम है. आसान शब्दों मेंं कहा जाय तो, आपके घर के फ्रिज में चॉकलेट है, आप अकेले है, खा सकते है। लेकिन आप नहीं खाते क्युकी आपको मिल-बाँट कर खाना पसंद है। 
माता-पिता से पूछकर खाना पसंद है। ये संयम है, की चॉकलेट आपके पास है फिर भी इसको खाने का विचार त्याग दिया। 

धैर्य -

किसी विषम परस्थिति में अपने अंदर नकारात्मक विचार पर संयम रखना और सकारात्मक ही सोचना और उसके अनुरूप कर्म करना ही सच्चा धैर्य है। 

मानव जीवन के दस लक्षण हैं, धर्माचारी को ये 10 आभूषण अवश्य धारण करने चाहिए। चाहे वो किसी भी धर्म का हो।
▪क्षमा
▪आत्म-नियंत्रण
▪चोरी न करना
▪पवित्रता
▪इन्द्रिय-संयम
▪बुद्धि,
▪विद्या,
▪सत्य
▪क्रोध न करना ।


परिश्रम के साथ धैर्य भी -महात्मा बुद्ध  -


एक बार भगवान बुद्ध अपने अनुयायियों के साथ किसी गांव में उपदेश देने जा रहे थे। उस गांव सें पूर्व ही मार्ग में उन लोगों को जगह-जगह बहुत सारे गड्ढे खुदे हुए मिले। बुद्ध के एक शिष्य ने उन गड्ढों को देखकर जिज्ञासा प्रकट की, आखिर इस तरह गढे का खुदे होने का तात्पर्य कया है?

बुद्ध बोले, पानी की तलाश में किसी व्यक्ति ने इतने गड्ढे खोदे है। यदि वह धैर्यपूर्वक एक ही स्थान पर गड्ढा खोदता तो उसे पानी अवश्य मिल जाता। पर वह थोडी देर गड्ढा खोदता और पानी न मिलने पर दूसरा गड्ढा खोदना शुरू कर देता।

व्यक्ति को परिश्रम करने के साथ धैर्य भी रखना चाहिए।

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