साहस (sahas kya hota hai) का अगर हम साधारण अर्थ समझे तो इसे हिम्मत कहा जाता है। और किसी भी व्यक्ति में हिम्मत आती है निर्भयता या निडरता (nidarata kya hai) से। व्यक्ति अगर अपने जीवन और मरण के बीच में अगर अंतर मिटा दे तो यह निडरता की सबसे उच्चतम सीमा है।
भय और साहस तो विपरीत स्थितियां है। जिसके पास भय होगा वो व्यक्ति साहस से कोसो से दूर होता है और जिस व्यक्ति के पास साहस होता है भय उससे कोसो दूर रहता है। ये बात पत्थर की लकीर है जिसे हर व्यक्ति, बालक या बच्चे को नैतिक शिक्षा के रूप में समझाना अति आवश्यक है। आजकल की तकनीकी पढाई के साथ साथ हमें पारम्परिक विचारो को नैतिक शिक्षा के साथ लेकर चलना चाहिए।
नैतिक शिक्षा के द्वारा हम आने वाली पीढ़ी को हमारे ऋषियों, मुनियो द्वारा अर्जित ज्ञान को समझाने मात्र की कोशिश है। जिसके द्वारा व्यक्तित्व निर्माण होता है। स्वामी विवेकानंद ने भी कहा है की "किसी व्यक्ति की दुर्बलता ही उसके मृत्यु का लक्षण है".
दुर्बल या कमजोर व्यक्ति से न कोई दोस्ती करता है, न रिश्तेदार होते है और उसके अपने भी उसे तथावत स्थिति में छोड़ देते है। ऐसा व्यक्ति पग पग पर अपमानित हो सकता है। इसलिए व्यक्ति को साहस हर कदम पर साथ रखना चाहिए। मतलव हर स्थिति के लिए हर पल तैयार।
भय मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। जैसे कुछ लोग पांव भीगने के डर से समुन्द्र में कदम नहीं रखते है। ऐसे लोगो को ही समुन्दर में डूबने का खतरा ज्यादा होता है। जबकि निडर व्यक्ति सबसे पहले तैरना सीखेगा और तैरना सीखने के बाद खुले समुन्दर में बेहिचक छलांग लगा कर मोती चुनकर लाता है। भय करने वाले लोग पहले आपको डराते है, और आपके सफल होने पर तालियाँ बजाकर मन ही मन ऊपर वाले को कोष कर रह जाते है।
साहसी होने के फायदे -
साहसी व्यक्ति हमेशा कर्मशील रहता है। उस व्यक्ति के अंदर हमेशा स्वतंत्र चिंतन और मनन की प्रवृति बनी रहती है। आपको जानकार आश्चर्य होगा है की कभी कभी ऐसे व्यक्ति सपनो में ऐसे रसो का स्वाद चखते है जो साधारण डरे हुए व्यक्ति कभी सोच ही नहीं सकता, उससे सुख पाने की बात तो बहुत दूर की बात है।
तो वही साहसी व्यक्ति समुन्दर की विशाल लहरों को चीरकर तैरने का दम रखता है।
निडर या साहसी व्यक्ति को पता होता है की कोई भी कार्य बिना योजना के होता नहीं है। समुन्दर विशाल है अगर ये सोचकर कोई तैरना ही छोड़ दे तो मूर्खता ही होगी। निडर व्यक्ति अपने जनम और मरण के सत्य से अवगत होता है। उसके अंदर आत्म विश्वास होता है और उसे पता होता है की ये कार्य वो उतनी ही आसानी से कार्य सकता है जैसे की दैनिक कार्य होते है। उसे पता होता है की हार उसी की होती है जिसे अपनी योजना पर पूर्ण विश्वास नहीं होता अर्थात उस स्थिति में भी डर का ही अहम् रोल निर्धारित है।
साहस का अगर उच्चतम उदाहरण दिया जाए तो वो शिवाजी महाराज के जीवन से लिया जा सकता है जो औरंगजेव की कैद से बच निकले। तो वही वीर सावरकर ने समुंदर में छलांग लगा दी थी। भगत सिंह ने बिना डरे असेम्बली पर बम्ब फेका और ट्रैन लूट ली थी। महाराणा प्रताप संधि करने के बजाय युद्द के मैदान में उतर गए। साहस की अनेको ऐसी वीर गाथाये हमारे इतिहास में भरी पड़ी है। जिन्हे नैतिकशिक्षा के माध्यम से समाज के सभी वर्गों तक पहुँचाया जा सकता है। इससे व्यक्तित्व निर्माण तो होगा ही साथ साथ अपना इतिहास का मूल्य भी याद रहेगा।
बच्चो में साहस भरने की शुरुआत नैतिक शिक्षा से अच्छा कुछ हो नहीं सकता है। आप बच्चो को नैतिक शिक्षा के द्वारा साहस का मानवीय जीवन में महत्त्व समझा सकते है। क्युकी भय से व्याप्त जानवर सिर्फ जंगल बर्वाद करता है और खुद जल्दी ही मृत्यु को प्राप्त होता है। इसे समझाना ही साहस है।
Also Read -
0 टिप्पणियाँ