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क्रोध अर्थात गुस्सा क्या है? क्यों आता है? - Anger

जिस तरह से मनुष्य के शरीर को रोग लगते है  वो रोग कही अधिक, तो कही कम होते है। ठीक इसी प्रकार से मानव मस्तिष्क में भी रोग लगते है जिसमे एक रोग का नाम क्रोध है। 

शास्त्रों के अनुसार पांच तरह के विकार होते हैं काम, क्रोध, लोभ, मोह, और अहंकार। 

इनमे से जब कोई भी विकार मनुष्य में बढ़ जाता है तब उसका विवेक समाप्त हो जाता है। आप विवेक को फिलहाल यहां शारीरिक इम्यूनिटी की तरह समझ सकते है।  विवेक समाप्त होते ही समझ जाए की आप गलत मार्ग पर है, और भगवान् आपके साथ नहीं है क्युकी विवेक न होने की स्थिति में व्यक्ति हमेशा अधर्म का मार्ग चुनता है, या मानसिक चिंता, या शक करना या पारिवारिक कलेश में घिर जाता है।  

गुस्सा क्यों आता है?

मनुष्य को गुस्सा या क्रोध केवल दो कारणों से आता है -

क्रोध उत्पन्न होने का पहला कारण - काम, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या है अर्थात -
  1. काम (भोगों की अत्यधिक इच्छा )
  2. लोभ ( संग्रह की अत्यधिक इच्छा / स्वयं का स्वार्थ)
  3. मोह (अपनों पर नियंत्रण)
  4. ईर्ष्या (मतिष्क में प्रतिद्वंदी का भाव होना)
  5. और अहंकार (सिर्फ मैं ही सही) 

क्रोध उत्पन्न होने का दूसरा कारण - धर्म और अधर्म अर्थात -

इस प्रकार का क्रोध आना दोष नहीं बल्कि आवश्यक है। ऐसा क्रोध भगवान् राम, भगवान् श्री कृष्ण, महादेव जी आदि भगवान् भी करते रहे है और करते रहेंगे। इसके लिए आपको धर्म और अधर्म का ज्ञान अर्थात शास्त्रों का ज्ञान होना चाहिए। शास्त्रों के अध्ययन से धर्म और अधर्म का  ज्ञान अपने आप होने लगता है। क्युकी हर व्यक्ति का कर्तव्य की तरह अपना अपना धर्म होता है। अपने धर्म का ज्ञान होने से विवेक उत्पन्न होता है। समझे विवेक क्या है?

सलाह - अगर समय की समस्या है तो कम से कम श्री योग वशिष्ठ और श्रीमदभगवदगीता तो अवश्य ही सुनना चाहिए। इन्हे आप यूट्यूब से ऑडियो रूप में डाउनलोड करके सुन सकते है। 

शंका होने की स्थिति में "As It is" अर्थात गीता प्रेस द्वारा प्रिंट की हुयी किताबे पढ़े। फिर भी समस्या हो तो किसी सिद्ध पुरुष से अपनी शंका का समाधान करे और आगे बढे। 

क्रोध अर्थात गुस्सा क्या है? क्यों आता है? - Anger


छोटी छोटी बातों पर गुस्सा क्यों आता है?

गुस्से अर्थात क्रोध से निम्न पीड़ा मनुष्य को भोगनी पड़ सकती है।  चलिए समझते है -

काम (स्त्री से अत्यधिक लगाव / भोगों की अत्यधिक इच्छा) - 

ज्यादा होने पर आपको मिलता है गृह क्लेश, मानसिक असंतोष, चिंता, और चिंता पर काबू करने के लिए नशे का सेवन करना। आपके अनुसार स्थिति न होने से त्वरित गुस्सा या खीझ बढ़ती जाती है। आज के समय में इसे प्यार, मोहब्बत कहा जाता है। ये शब्द हिंदी नहीं है, हिंदी में प्रेम होता है। 

लोभ ( स्वयं का अत्यधिक स्वार्थ / संग्रह की अत्यधिक इच्छा ) - 

लोभ ज्यादा होने पर मनुष्य असत्य (झूठ ) या अधर्म का मार्ग चुन सकते है। जिससे मनुष्य अन्य लोगो या स्वजनों का विश्वास खो देते है। और त्वरित गुस्सा या खीझ बढ़ता जाता है। 

मोह (अपनों पर अत्यधिक नियंत्रण) - 

मोह बढ़ने की स्थिति में आप अपने स्वजनों को अपने नियंत्रण में उसी प्रकार से रखना चाहते है जैसे खुले जंगल में बकरी अपने मेमने को अपनी आँखों से ओझल नहीं होने देना चाहती। इससे गृह क्लेश, मानसिक असंतोष, चिंता, और पारिवारिक खीझ या गुस्सा उत्पन्न होता है। 

ईर्ष्या (मतिष्क में प्रतिद्वंदी का भाव होना) - 

जब मनुष्य किसी को अपना प्रतिद्वंदी मानने लगता है तो उससे जीतने के लिए अधर्म सहारा लेता है। क्रोध उत्पन्न होने से विवेक नहीं रहता और उलटे सीधे निर्णय अपनी ईर्ष्या के फलस्वरूप एक फालतू की प्रतिस्पर्था  जन्म देता है और जीतने के  लिए छटपटाता रहता है। 

और अहंकार (सिर्फ मैं ही सही) - 

यह क्रोध या गुस्सा आने का सबसे बड़ा कारण है। अहंकार बढ़ने की स्थिति में व्यक्ति किसी धर्म या सत्य की बात मानने या समझने पर अपनी हार समझता है। ऐसा व्यक्ति अपने आप को ज्ञानी, ताक़तवर, धनी, और खुद का निर्णय को सही समझने वाला होता है। अहंकार मनुष्य के जीवन में छोटे या बड़े बवंडर के रूप में आते रहते है छोटे या बड़े बवंडर अपने आकार के हिसाब से मनुष्य का जीवन प्रभावित करते है। भिन्न्न भिन्न अहंकार के बारे में हमेशा याद रखने से कुछ हद तक बचा जा सकता है। 



(गीता 5। 12)। तीसरे अध्याय के छत्तीसवें श्लोक में अर्जुन ने पूछा था कि -

मनुष्य न चाहता हुआ भी पाप का आचरण क्यों करता है?


उसके उत्तर में भगवान् ने काम और क्रोध -- ये दो शत्रु बताये। परन्तु उन दोनों में भी एष शब्द देकर कामना को ही मुख्य बताया क्योंकि कामना में विघ्न पड़ने पर क्रोध आता है। यहाँ काम? क्रोध और लोभ -- ये तीन शत्रु बताते हैं। 

तात्पर्य है कि भोगों की तरफ वृत्तियों का होना काम है और संग्रह की तरफ वृत्तियों का होना लोभ है। 
जहाँ काम शब्द अकेला आता है? वहाँ उसके अन्तर्गत ही भोग और संग्रह की इच्छा आती है। परन्तु जहाँ काम और लोभ -- दोनों स्वतन्त्र रूप से आते हैं? वहाँ भोग की इच्छा को लेकर काम और संग्रह की इच्छा को लेकर लोभ आता है और इन दोनों में बाधा पड़ने पर क्रोध आता है। 

जब काम, क्रोध और लोभ -- तीनों अधिक बढ़ जाते हैं? तब मोह होता है। काम से क्रोध पैदा होता है और क्रोध से सम्मोह हो जाता है और विवेक साथ छोड़ देता है। 


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