क्या आपने कभी नैतिक शिक्षा में कपट शब्द की कोई परिभाषा मिली है? अगर नहीं मिली तो कोई बात नहीं, यहाँ उसको हम परिभाषित करने की कोशिश करेंगे।
विज्ञान और कुछ धर्मो के शास्त्रों के अनुसार अगर सकारात्मक और नकारात्मक दो प्रकार की उर्जाये होती है तो कपट शब्द का इस्तेमाल नकारात्मक रूप में ही किया जाता रहा है।
हम यह सभी तो जानते ही होंगे कि शास्त्रों में देवताओं को हमेशा सकारात्मकता अर्थात सात्विक गुणों से युक्त बताया गया है तो राक्षसों को नकारात्मकता अर्थात तामसिक गुणों से युक्त बताया गया है।
इस आधार पर कपट राक्षसी गुण है।
अब मनुष्य में दोनों प्रकार की ऊर्जाये होती है जब उसे अपनी अंदर की उर्जाये और उन गुणों का ज्ञान होता है, वहां से वह सुधार कर सकता है क्युकी जब तक उसे ज्ञान होता है तब तक मृत्यु प्राप्त हो चूका होता है या होने वाला होता है। तब तक बहुत देर हो जाती है। फिर वह जिस गुण को रखते हुए मृत्यु को प्राप्त होता है फिर उन्ही गुणों के आधार पर वह नकारात्मक या सकारात्मक ऊर्जा के रूप में ब्राहमंड में मुक्त होती है। और अपने गुणों के आधार पर वह ऊर्जा विचरती या भटकती है।
तो जो मनुष्य अपने स्वार्थ के लिए या तो भेद छुपाते है या असत्य को धारण करते है तो वे कपटी कहलाते है। कपट एक राक्षसी प्रवृति है, जिसका उदेश्य स्वयं के स्वार्थ के लिए किसी अन्य का अहित करने में निहित होता है।
नोट - यह जानकारी पब्लिक डोमेन में उपलब्ध जानकारियों के माध्यम से है। सत्यता की पुष्टि नहीं कर सकते। यह लेखक का अपना अनुभव हो सकता है।
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