जब किसी के बारे में नकारात्मक विचार आते है और फिर हम उन नकारात्मक विचारो का वखान करते है उसे बुराई कहते है। किसी को बुरा कहने की क्रिया या नकारात्मक भाव, इसे अनुचित या निन्दनीय आचरण अथवा निन्दनीय व्यवहार के रूप में जाना जाता है।
यह राक्षसी गुण है, जब किसी भी व्यक्ति का मष्तिष्क किसी व्यक्ति विशेष की बुराई या बुरी बातों का चिंतन करके सुख प्राप्त करती है तब वह उतना ही परमात्मा से दूर होता है। तो वह बदले में वह उस व्यक्ति या विशेष का विछोह प्राप्त करता है।
लेकिन
देवत्व गुण के फलस्वरूप यदि वही मनुष्य किसी स्त्री-पुरुष, देव या भगवान् की स्तुति करता है, या चरित्र के सकारात्मक गुणों की चर्चा करता है जिसमे वह किसी व्यक्ति विशेष के चरित्र के गुणों का वखान करता है।
तो वह बदले में वह उस व्यक्ति या विशेष का प्रेम प्राप्त करता है।
इसलिए निंदा या बुराई करने वाला व्यक्ति कभी भी अपने इष्ट के सात्विक भाव को प्राप्त नहीं कर पाता। जो उसकी साधना या भक्ति की सबसे बड़ी बाधा है
विशेष नोट -
खासतौर से सनातन धर्म के विद्यार्थियों को हमेशा परनिंदा से बचना चाहिए, क्युकी जैसी दृष्टि होगी, वैसी ही सृष्टि होगी। वे अपने आप को भ्रम में फसने से बचा सकते है, क्युकी अज्ञानता से भ्रम पैदा होता है, और भ्रम से व्यक्ति धर्म परिवर्तन करता है जिससे वह अपनी पीढ़ी को नष्ट कर देता है, और जिनसे उसे सनातन धर्म की रक्षा करनी चाहिए, भ्रम में फसकर वह उनकी तरफ से स्वयं सनातन धर्म को नष्ट करने में लग जाता है। इससे आध्यात्मिक और भौतिक रूप से पूरी तरह से पतन हो जाता है।
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