- महात्मा विदुर कहते हैं कि जिस धन को अर्जित करने में मन तथा शरीर को क्लेश हो, धर्म का उल्लंघन करना पड़े, शत्रु के सामने अपना सिर झुकाने की बाध्यता उपस्थित हो, उसे प्राप्त करने का विचार ही त्याग देना श्रेयस्कर है।
- पर स्त्री का स्पर्श, पर धन का हरण, मित्रों का त्याग रूप यह तीनों दोष क्रमशः काम, लोभ, और क्रोध से उत्पन्न होते हैं।
- जो विश्वास का पात्र नहीं है, उसका तो कभी विश्वास किया ही नहीं जाना चाहिए। पर जो विश्वास के योग्य है, उस पर भी अधिक विश्वास नहीं किया जाना चाहिए। विश्वास से जो भय उत्पन्न होता है, वह मूल उद्देश्य का भी नाश कर डालता है।
- संसार के छह सुख प्रमुख है- धन प्राप्ति, हमेशा स्वस्थ रहना, वश में रहने वाले पुत्र, प्रिय भार्या, प्रिय बोलने वाली भार्या और मनोरथ पूर्ण कराने वाली विद्या- अर्थात् इन छह से संसार में सुख उपलब्ध होता है।
- बुद्धिमान व्यक्ति के प्रति अपराध कर कोई दूर भी चला जाए तो चैन से न बैठे, क्योंकि बुद्धिमान व्यक्ति की बाहें लंबी होती है और समय आने पर वह अपना बदला लेता है।
- क्षमा को दोष नहीं मानना चाहिए, निश्चय ही क्षमा परम बल है। क्षमा निर्बल मनुष्यों का गुण है और बलवानों का क्षमा भूषण है।
- काम, क्रोध और लोभ यह तीन प्रकार के नरक यानी दुखों की ओर जाने के मार्ग है। यह तीनों आत्मा का नाश करने वाले हैं, इसलिए इनसे हमेशा दूर रहना चाहिए।
- ईर्ष्या, दूसरों से घृणा करने वाला, असंतुष्ट, क्रोध करने वाला, शंकालु और पराश्रित (दूसरों पर आश्रित रहने वाले) इन छह प्रकार के व्यक्ति सदा दुखी रहते हैं।
- जो पुरुष अच्छे कर्मों और पुरुषों में विश्वास नहीं रखता, गुरुजनों में भी स्वभाव से ही शंकित रहता है। किसी का विश्वास नहीं करता, मित्रों का परित्याग करता है... वह पुरुष निश्चय ही अधर्मी होता है।
- जो अच्छे कर्म करता है और बुरे कर्मों से दूर रहता है, साथ ही जो ईश्वर में भरोसा रखता है और श्रद्धालु है उसके ये सद्गुण पंडित होने के लक्षण हैं।
- जो अपना आदर-सम्मान होने पर खुशी से फूल नहीं उठता और अनादर होने पर क्रोधित नहीं होता तथा गंगा जी के कुण्ड के समान जिसका मन अशांत नहीं होता, वह ज्ञानी कहलाता है।
- मूढ़ चित वाला नीच व्यक्ति बिना बुलाए ही अंदर चला आता है, बिना पूछे ही बोलने लगता है तथा जो विश्वास करने योग्य नहीं हैं उन पर भी विश्वास कर लेता है।
- जो बहुत धन, विद्या तथा ऐश्वर्य को पाकर भी इठलाता नहीं, वह पंडित कहलाता है।
- मनुष्य अकेला पाप करता है और बहुत से लोग उसका आनंद उठाते हैं। आनंद उठाने वाले तो बच जाते हैं पर पाप करने वाला दोष का भागी होता है।
- किसी धनुर्धर वीर के द्वारा छोड़ा हुआ बाण संभव है किसी एक को भी मारे या न मारे, मगर बुद्धिमान द्वारा प्रयुक्त की हुई बुद्धि राजा के साथ-साथ सम्पूर्ण राष्ट्र का विनाश कर सकती है।
- विदुर धृतराष्ट्र को समझाते हुए कहते हैं: राजन! जैसे समुद्र के पार जाने के लिए नाव ही एकमात्र साधन है उसी प्रकार स्वर्ग के लिए सत्य ही एकमात्र सीढ़ी है, कुछ और नहीं, किन्तु आप इसे नहीं समझ रहे हैं।
- केवल धर्म ही परम कल्याणकारक है, एकमात्र क्षमा ही शांति का सर्वश्रेष्ठ उपाय है। एक विद्या ही परम संतोष देने वाली है और एकमात्र अहिंसा ही सुख देने वाली है।
- विदुर धृतराष्ट्र से कहते हैं : राजन! ये दो प्रकार के पुरुष स्वर्ग के भी ऊपर स्थान पाते हैं- शक्तिशाली होने पर भी क्षमा करने वाला और निर्धन होने पर भी दान देने वाला।
- काम, क्रोध और लोभ ये आत्मा का नाश करने वाले नरक के तीन दरवाजे हैं, अत: इन तीनों को त्याग देना चाहिए।
- अच्छे कर्मो को अपनाना और बुरे कर्मों से दूर रहना, साथ ही परमात्मा में विश्वास रखना और श्रद्धालु भी होना – ऐसे सद्गुण बुद्धिमान और पंडित होने का लक्षण है
- अपने वास्तविक स्वरूप का ज्ञान, उद्योग, दुःख सहने की शक्ति और धर्म में स्थिरता – ये गुण जिस मनुष्य को पुरुषार्थ करने से नहीं रोक पाते, वही बुद्धिमान या पंडित कहलाता है
- अल्पमात्रा में धन होते हुए भी कीमती वस्तु को पाने की कामना और शक्तिहीन होते हुए भी क्रोध करना मनुष्य की देह के लिये कष्टदायक और कांटों के समान है
- ऐसे पुरूषों को अनर्थ दूर से ही छोड़ देते हैं-जो अपने आश्रित जनों को बांटकर खाता है, बहुत अधिक काम करके भी थोड़ा सोता है तथा मांगने पर जो मित्र नहीं है, उसे भी धन देता है
- पर स्त्री का स्पर्श, पर धन का हरण, मित्रों का त्याग रूप यह तीनों दोष क्रमशः काम, लोभ, और क्रोध से उत्पन्न होते हैं
- कटु वचन रूपी बाण से आहत मनुष्य रात-दिन घुलता रहता है
- जो विश्वास का पात्र नहीं है, उसका तो कभी विश्वास किया ही नहीं जाना चाहिए। पर जो विश्वास के योग्य है, उस पर भी अधिक विश्वास नहीं किया जाना चाहिए। विश्वास से जो भय उत्पन्न होता है, वह मूल उद्देश्य का भी नाश कर डालता है
- किसी धनुर्धर वीर के द्वारा छोड़ा हुआ बाण संभव है, किसी एक को भी मारे या न मारे। मगर बुद्धिमान द्वारा प्रयुक्त की हुई बुद्धि राजा के साथ-साथ सम्पूर्ण राष्ट्र का विनाश कर सकती है
- संसार के छह सुख प्रमुख है- धन प्राप्ति, हमेशा स्वस्थ रहना, वश में रहने वाले पुत्र, प्रिय भार्या, प्रिय बोलने वाली भार्या और मनोरथ पूर्ण कराने वाली विद्या- अर्थात् इन छह से संसार में सुख उपलब्ध होता है
- किसी प्रयोजन से किये गए कर्मों में पहले प्रयोजन को समझ लेना चाहिए। खूब सोच-विचार कर काम करना चाहिए, जल्दबाजी से किसी काम का आरम्भ नहीं करना चाहिए
- केवल धर्म ही परम कल्याणकारक है, एकमात्र क्षमा ही शांति का सर्वश्रेष्ठ उपाय है। एक विद्या ही परम संतोष देने वाली है और एकमात्र अहिंसा ही सुख देने वाली है
- बुद्धिमान व्यक्ति के प्रति अपराध कर कोई दूर भी चला जाए तो चैन से न बैठे, क्योंकि बुद्धिमान व्यक्ति की बाहें लंबी होती है और समय आने पर वह अपना बदला लेता है
- क्षमा को दोष नहीं मानना चाहिए, निश्चय ही क्षमा परम बल है। क्षमा निर्बल मनुष्यों का गुण है और बलवानों का क्षमा-भूषण है
- जिस कार्य को करने के बाद में पछताना पड़े, उसे किया ही क्यों जाए? जब हमें मालूम है कि क्षणभंगुर है तो इतनी हाय-माया क्यों
- जिस व्यकित के कर्मों में न ही सर्दी और न ही गर्मी, न ही भय और न ही अनुराग, न ही संपत्ति और न ही दरिद्रता विघ्न डाल पाते हैं वही पण्डित कहलाता है
- जिस व्यक्ति के कर्त्तव्य, सलाह और पहले से लिए गए निर्णय को केवल काम संपन्न होने पर ही दुसरे लोग जान पाते हैं, वही पंडित कहलाता है
- जो दुसरो के धन, सौन्दर्य, बल, कुल, सुख, सौभाग्य व सम्मान से ईष्या करते हैं, वे सदैव दुखी रहते हैं
- निम्न छः प्रकार के मनुष्य सदा दुखी रहते हैं-ईर्ष्या करने वाला, घृणा करने वाला, असंतोषी, क्रोधी, सदा शंकित रहने वाला और दूसरों के भाग्य पर जीवन-निर्वाह करने वाला – ये सदा दुखी रहते हैं
- बिल में रहने वाले जीवों को जैसे सांप खा जाता है, उसी प्रकार शत्रु से डटकर मुकाबला न करने वाले शासक और परदेश न जाने वाले ब्राह्मण – इन दोनों को पृथ्वी खा जाती है
- बुद्धिमान पुरुष शक्ति के अनुसार काम करने के इच्छा रखते हैं और उसे पूरा भी करते हैं तथा किसी वस्तु को तुक्ष्य समझ कर उसकी अवहेलना नहीं करते हैं
- पिता, माता अग्नि, आत्मा और गुरु – मनुष्य को इन पांच अग्नियों की बड़े यत्न से सेवा करनी चाहिए
- मन, वचन और कर्म से मनुष्य जिस विषय का बार – बार ध्यान करता है, वही उसे अपनी और आकर्षित कर लेता है, अत: सदैव अच्छे कर्म ही करने चाहिए
- मनुष्य को कभी भी सत्य, दान, कर्मण्यता, अनसूया (गुणों में दोष दिखाने की प्रवृत्ति का अभाव ), क्षमा तथा धैर्य – इन छः गुणों का त्याग नहीं करना चाहिए
- मनुष्य जैसे लोगों के बीच उठता-बैठता है, जैसो की सेवा करता है तथा जैसा बनने की कमाना करता है, वैसा ही बन जाता है
- मीठे शब्दों से कही गई बात अनेक तरह से कल्याण करती है, लेकिन कटु शब्दों में कही गई बात अनर्थ का कारण बन जाती है
भरतश्रेष्ठ! पिता, माता, अग्नि, आत्मा और गुरु-मनुष्य को इन पांच की बड़े यत्न से सेवा करनी चाहिए।
इन 4 को धन सौंपने पर हो सकता है सर्वनाश - विदुर नीति
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