कृति (Creation) -
मनुष्य के द्वारा निर्मित रचना को कृति कहते है। अर्थात जो कुछ हम करते हैं, वह सब कर्म ही हमारी ‘कृति’ है।
प्रकृति (Nature) -
तो वही पूर्ण पुरुष भगवान के द्वारा अपने ज्ञान से बनायी गयी रचना को प्रकृति कहते है। इसमें कोई विकार नहीं होता है। अर्थात भगवान् के द्वारा इस प्रकृति में कोई विकार नहीं होता है.
हमारे प्रत्येक कार्य हमारे ज्ञान के स्वभाव के अनुसार होते हैं, इसलिए मनुष्य का ज्ञान का स्वभाव ही उसकी ‘प्रकृति’ है।
शास्त्रों में पूर्ण पुरुष को भगवान् और पूर्ण स्त्री को प्रकृति कहा गया है।
विकृति (Distortion ) -
लेकिन जब कोई अपूर्ण पुरुष या मनुष्य अपने अज्ञान से रचना या बदलाव करने की चेष्टा करता है तो किसी अज्ञान के से किये हुए कर्म का परिणाम हमेशा विकृति होता है।
हमारे कुछ कार्य हमारे अज्ञान के स्वभाव के अनुसार भी होते हैं, इसलिए मनुष्य का अज्ञान का स्वभाव ही उसकी ‘विकृति’ है।
संस्कृति (Culture) -
हमें स्पष्ट हो गया कि ज्ञान से प्रकृति और अज्ञानता से विकृति की रचना होती है। लेकिन जब मनुष्य अपनी आने वाली पीढ़ी को इसी प्रकृति की रक्षा के लिए जो दिशा, गति और निर्धारित लक्ष्य का ज्ञान देकर जाता है वह संस्कृति कहलाती है। इसलिए प्रत्येक देश अपनी संस्कृति का, अपने पूर्वजो का आदेश समझकर पालन करता है।
आज के समाज में व्यक्ति अपनी संस्कृति से दूर होने के कारण अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए प्रकृति की तुलना में विकृति की रचना करने में लगा है जिसे आज मनुष्य जलवायु परिवर्तन (Climate Change) का नाम देकर अपने अज्ञानता को छुपाने का कृत्य कर रहा है।
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