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जीवन सफल बनाने की अमूल्य शिक्षा - प्रेरक कहानी

उज्जैन के राजा शिवसेन बड़े ही दयालु व धर्मात्मा थे| उनका राज्य धन्य-धन से परिपूर्ण था और प्रजा बहुत ही प्रसन्न रहती थी लेकिन उन राजा के कोई संतान नहीं थी इस कारण  से वे बड़े दुःखी रहते थे| एक दिन उनकी पत्नी ने कहा - महाराज हमारे राज्य में एक महात्मा रहते है क्यों न हम उनके आश्रम में जाकर उनकी सेवा किया करे क्या पता वे हमारी सेवा से प्रसन्न होकर हमें संतान प्राप्ति का कोई मार्ग बता दे| 

दूसरे दिन प्रातः ही राजा व रानी उठाकर स्नान-ध्यान करके महात्मा के आश्रम में चले गए ,और उन महात्मा की सेवा करने लगे| ऐसा वे कई दिनों तक करते रहे ,तब एक दिन महात्मा से पूछा - राजन आप रोज मेरे आश्रम में आकर मेरी सेवा करते हो ,आपके आने का उद्देश्य क्या है? तब राजा ने अपनी व्यथा महात्मा को बताई|  

तो महात्मा ने कहा - राजन तुम संतान प्राप्ति के लिए विष्णुयाग (विष्णुयाग रहस्यम् अर्थात विष्णुयाग पध्दति Book) करो| अगर भगवान ने चाहा तो बहुत जल्दी तुम्हे पुत्र की प्राप्ति होगी| तब राजा ने अपने महल आकर महात्मा के कथनानुसार विधि-विधान के साथ विष्णुयाग किया| इसके परिणाम स्वरूप रानी गर्भवती हो गई और नौ माह के बाद रानी ने एक बहुत ही सुन्दर पुत्र को जन्म दिया| जिसे देखकर राजा बहुत ही अधिक प्रसन्न हुए और उन्होंने अपने पुत्र का नाम विष्णु रखा| 

 जब राजकुमार विष्णु शिक्षा ग्रहण करने लायक हुए तो राजा ने महल में ही गुरु बुलाकर उनकी शिक्षा पूर्ण कराई| कुशाग्रबुद्धि होने के कारण विष्णु ने बहुत जल्दी उच्चकोटि की शिक्षा ग्रहण कर ली| 

एक दिन राजा शिवसेन अपने पुत्र विष्णु को उन्ही महात्मा के पास लेकर गया और बोला - महात्मा जी अपने जैसा बताया था उसी के अनुसार अनुष्ठान करने पर मुझे इस पुत्र की प्राप्ति हुई है| कृपया करके आप मेरे पुत्र को आशीर्वाद दीजिए और इसके भविष्य के बारे में कुछ बताइए| 

तब महात्मा ने विष्णु को आशीर्वाद दिया और उसके हाव्-भाव को देखकर राजा से कहा - राजन तुम्हारा पुत्र बड़े होकर उच्चकोटि का विरक्त महापुरुष बन सकता है| 

यह सुनकर राजा चकित हो गए और सोचने लगे अगर विष्णु वैराग्य धारण कर लेगा तो मेरे राज्य का क्या होगा| लेकिन बोले कुछ नहीं और महात्मा को प्रणाम करके अपने महल लौट आए| 

दूसरे दिन राजा ने आपकी पत्नी सहित कुछ विशेष मंत्रीगणों को बुलाकर उन्हें महात्मा की बात बताई और उन्हें विशेष रूप से आदेश दिया कि राजकुमार विष्णु को सदैव ऐशो-आराम माहौल में ही रखे ताकि वह वैराग्य की ओर न जा सके| उनके सामने भक्ति और ज्ञान की बातें न की जाए| राजा की आज्ञा के अनुसार सारी व्यवस्था महल के अंदर की गई , लेकिन विष्णु के अंदर जो पूर्वजन्म के संस्कार थे वह उसे भक्ति व वैराग्य की ओर ही अग्रसर कर रहे थे| 

जब विष्णु विवाह योग्य हुए तो पडोसी राज्य की राजकुमारी के साथ उनका विवाह कर दिया गया| कुछ समय के बाद विष्णु की पत्नी गर्भवती हो गई और विष्णु अपनी पत्नी की देखभाल करने लगे| लेकिन एक दिन रात्रि के समय उनकी पत्नी की प्रसव पीड़ा आरंभ हो गई| जब उनकी पत्नी के बच्चा पैदा हो रहा था तो विष्णु उसके पास ही बैठे थे| उनकी पत्नी की प्रसव पीड़ा देखकर उन्हें बहुत दुःख हो रहा था, लेकिन जब उन्होंने देखा कि एक बच्चा जेर व मैले के साथ कितना चिल्लाता व फड़फड़ाता है तब अंत में कितने कष्ट के बाद पैदा होता है तो उन्हें बहुत बुरा लगा| 

लेकिन थोड़े समय के बाद सभी लोग विष्णु की पत्नी के पास आ गए और वैद्य उनका उपचार करने लगे| वैद्य ने कहा - राजन चिंता की कोई बात नहीं है लड़के को पैदा होने में कष्ट तो हुआ है लेकिन अब वह बिल्कुल ठीक है| 
विष्णु ने अपने मंत्री से पूछा - मंत्री जी, बच्चा पैदा होने के बाद चिल्लाया और फड़फड़ाया क्यों? और यह जेर व मैले में कैसे रहता है उसे तो इसमें बहुत कष्ट होते होंगे?

मंत्री के उत्तर दिया - इसमें कोई संदेह नहीं के गर्भ का कष्ट तो बहुत भयानक होता है क्योकि उसमे सभी द्वार बंद होते है लेकिन जब बच्चा बाहर आता है तो एक बार उसे उससे भी ज्यादा कष्ट उठाना पड़ता है| तब कही जाकर वह इस दुनिया में आता है| 

विष्णु  - लेकिन गर्भ का यह कष्ट प्राणी को क्यों भोगना पड़ता है? 
मंत्री - यह उससे पूर्वजन्म के कारण भोगना पड़ता है| 
विष्णु - पूर्वजन्म क्या होता है?
मंत्री - प्राणी जन्म से पहले जिस शरीर में होता है वह उसका पूर्वजन्म होता है| वैसे तो मनुष्य को अपने पापों का दंड इसी जन्म में मिल जाता है लेकिन अगर कुछ पाप शेष रह जाये तो उसका दंड उसे अगले जन्म में भोगना पड़ता है| जैसे कि इस बच्चे ने भोगे है| 
विष्णु - पाप क्या है?
मंत्री - दूसरों कष्ट देना, झूठ बोलना, चोरी करना, परायी स्त्री पर गलत नजर डालना, छल -कपट करना, मांस-मंदिर का सेवन करना ये सब पाप की श्रेणी में आते है| 
विष्णु - यह सब ज्ञान कहाँ मिलता है?
मंत्री - शास्त्रों में मिलता है| 
विष्णु - आप भी मुझे ये शास्त्र माँगा दीजिये 
मंत्री - चुप रहते है क्योंकि उन्हें राजा की बात याद आ जाती है| 

जब विष्णु को अपने सवालों का जबाव नहीं मिला तो वे यह सब सोचकर उदास रहने लगे| उन्हें उदास देखकर राजा ने मंत्री से पूछा - राजकुमार इतने चिंतित क्यों है तो मंत्री ने कहा - बच्चे के जन्म को देखकर विष्णु उदास व चिंतित है कि कितने कष्ट के बाद एक मनुष्य का जन्म मिलता है| 
तब राजा ने मंत्री को आदेश दिया, वे विष्णु को बाहर की सेर करा लाए ताकि उनका मन प्रसन्न हो जाए| मंत्री ने वैसा ही किया वे विष्णु को सेर के लिए बगीचे में लेकर गए| तो विष्णु की एक व्यक्ति पर नजर पड़ी जो रास्ते से जा रहा था, जो कि एक कुष्ठरोगी था| 

विष्णु - यह मनुष्य इतना विचित्र क्यों है और इसकी काया को क्या हुआ है?
मंत्री - यह कुष्ठरोगी है इसलिए इसकी काया ऐसी है| इसके पूर्वजन्म के बहुत भयंकर पाप होंगे जो इस जन्म में यह भोग रहा है| 
विष्णु - क्या यह रोग मुझे भी हो सकता है?
मंत्री - ऐसा न कहे राजकुमार, भगवान न करे कि आपको ऐसे कष्ट भोगने पड़े| 
विष्णु - जिन ग्रंथों में इन पापों के फल का विस्तार से वर्णन हो आप वो मँगवा दीजिए| 
मंत्री - पहले की तरह फिर से चुप रहता है| 

जब विष्णु कुछ आगे जाते है तो उन्हें रास्ते में एक ऐसा व्यक्ति दिखाई देता है जिसके बाल सफेद, चेहरे पर झुर्रिया, आँखों में रोशनी कम, कमर झुकी, और काँपता हुआ लठ्ठी के सहारे चला जा रहा था|  विष्णु से पूछा - यह व्यक्ति कौन है और ऐसा क्यों है?

मंत्री - यह एक बुजुर्ग है जिसकी उम्र ढल गई है| 
विष्णु - जब मेरी उम्र ढलेगी तो मैं भी ऐसा हो जाऊँगा?
मंत्री - हाँ, बूढ़ा होने पर सभी की दशा ऐसी ही होती है| 

यह सब देखकर विष्णु और अधिक चिंतित हो गया| उसके मन में तरह-तरह के प्रश्न उठने लगे जिसका उसके पास कोई जवाब नहीं था| तभी उसने देखा की चार लोग एक शव को ले जा रहे थे और उसके पीछे-पीछे कई लोग चल रहे थे| जिसमे से कुछ रो रहे थे और 'राम नाम सत्य' बोल रहे थे| विष्णु बोला मंत्रीजी ये लोग कौन है और कंधे पर किसे ले जा रहे है?

मंत्री - किसी का कोई व्यक्ति मर गया है ये लोग उस व्यक्ति के शव को ले जा रहे है और जो लोग रो रहे है वे उस व्यक्ति के सगे- संबंधी है| लगता है कोई युवा मर गया है तभी ये इतना जोर-जोर से रो रहे है| 
विष्णु - शव क्या होता है?
मंत्री - जब कोई व्यक्ति अपने प्राण त्याग देता है तो उसके मृत शरीर को शव कहते है| 
विष्णु - क्या एक दिन हम भी मर जायेंगे? 
मंत्री - मरना तो सभी को है जो जन्म लेता है उसकी मृत्यु निश्चित है| यह दुनिया की सबसे बढ़ी सच्चाई है| 

यह सब सुनकर राजकुमार विष्णु के मन में ओर अधिक सवाल उठने लगे तभी आगे चलकर उसने देखा कि एक महात्मा ध्यान मग्न आसान में बैठे है तो विष्णु ने पूछा यह कौन है? 

मंत्री - यह विरक्त महात्मा है जिन्होंने भक्ति और वैराग्य से अपनी आत्मा का कल्याण कर लिया है और जीवन्मुक्त हो गए है| 
विष्णु - क्या मैं भी इन महात्मा की तरह अपनी आत्मा का कल्याण करके जीवन्मुक्त बन सकता हूँ?
मंत्री - बिलकुल बन सकते है क्योकि व्यक्ति जो चाहता है वह बन जाता है| लेकिन राजकुमार अभी आपकी आयु इतनी नहीं है कि आप इन सब बातों को समझ सके| इसलिए आप तो भोग-विलास करके अपने जीवन का आनंद ले| 
इतने में ही वे दोनों राजमहल वापस आ जाते है| लेकिन राजकुमार चिंतामुक्त होने की जगह और अधिक चिंता में डूब जाते है तो राजा कहते है विष्णु तुम्हारा चेहरा इतना उदास क्यों है? 

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तब उसने अपने मार्ग में जितने भी व्यक्ति मिले उन सबके बारे में राजा को बताया और मंत्री ने जो उत्तर दिए उसे भी बताया| तो राजा को उस मंत्री पर बहुत क्रोध आया उसने तुरंत उसे बोलकर कहा - अपने मेरे पुत्र को क्या उल्टा-सीधा सीखा दिया है? मैंने तो आपको इसे चिंतामुक्त करने के लिए भेजा था लेकिन तुमने तो इसे और विचलित कर दिया है| मैं तुम्हे इस राजमहल से बाहर निकलता हूँ| 

तभी विष्णु बोलै पिताजी इसमें मंत्रीजी की कोई गलती नहीं है मैंने ही उनसे पूछा था उन्होंने तो केवल मेरे प्रश्न का उत्तर दिया था| इसलिए मैं आप से विनती करता हूँ कि आप मंत्रीजी को कोई दंड न दे| राजा ने विष्णु के कहने पर मंत्री को दंड से मुक्त कर दिया और उसे समझया यह सब बेकार की बाते है तुम जीवन के ऐशो-आराम का आनंद लो इन सब पर ध्यान मत दो| 

लेकिन कुछ समय बाद भी विष्णु का मन शांत नहीं हुआ तो वे बिना किसी को बताये महल छोड़कर उन्ही महात्माजी के पास चले गए| जिनके पास राजा उन्हें लेकर गए थे| परन्तु सुबह जब राजा को पता चला की राजकुमार महल छोड़ने कर चले गए है तो उन्होंने उनकी खोज कराई लेकिन किसी को उनका पता नहीं चला की वे कहाँ गए है| तब राजा बहुत दुखी हुए और कुछ दिनों के बाद उन्ही महात्मा के आश्रम में गए जिनके पास राजकुमार थे| 

राजा बोले - महात्माजी मेरा पुत्र महल छोड़कर चला गया है, इतनी खोज कराने के बाद भी उसका कुछ पता नहीं चला| तब महात्माजी ने कहा - राजन चिंता करने की आवश्यकता नहीं है तुम्हारा पुत्र बहुत समय से मेरे आश्रम में ही रहता है और मुझसे भक्ति और वैराग्य का ज्ञान प्राप्त कर रहा है और सदा ही ध्यान में मग्न रहता है| 

मैंने तुमसे पहले ही कहा था तुम्हारा पुत्र बढ़ा होकर एक विरक्त महात्मा बनेगा, आज देखो वैसा ही हुआ| राजा महात्माजी के मुख से अपने पुत्र की प्रशंसा सुनकर बहुत प्रसन्न हुए और उनका मन जो राजकुमार के घर छोड़ने से दुःखी था वह भी शांत हो गया| तब राजा ने  महात्मा से हाथ जोड़कर प्रार्थना की वे उन्हें भी कुछ ज्ञान दे ताकि उनका मन भी वैराग्य की ओर अग्रसर हो जाए| 

तब राजा को भी महात्माजी ने भक्ति व वैराग्य का ज्ञान दिया जिसे सुनकर राजा का मन भी इस संसार के मोह बंधन से मुक्त हो गया और उन्होंने राज-पाठ अपने पुत्र विष्णु को देने का निर्णय किया| उन्होंने महात्माजी से कहा - आप मेरे पुत्र विष्णु को समझाए की वह इस राज्य का कार्यभार संभाले ताकि मैं अपना बचा हुआ जीवन भक्ति करके व्यतीत करूँ| 


महात्माजी ने विष्णु को अपने पास बुलाकर कहा - पुत्र अब तुम अपने राज्य वापस जाओ और राज्य का कार्यभार संभालो और अपने पिता को इस जिम्मेदारी से मुक्त करो ताकि ये भजन करके अपने जीवन को सार्थक कर सके ,सफल बना सके|  विष्णु ने अपने गुरु और पिता की आज्ञानुसार राजा बनकर राज्य का सभी कार्य संभाला और साथ-साथ भक्ति व वैराग्य के पथ पर भी चलता रहा|

राजा व रानी दोनों महात्माजी के साथ उनके आश्रम में रहकर ही भगवान की भक्ति करने लगे और वैराग्य की शिक्षा प्राप्त करने लगे| जिससे अंत में राजा व रानी को परमात्मा की प्राप्ति हो गयी| 

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है  कि गृहस्थ जीवन बीतने के बाद अपने बचे हुए जीवन को भक्ति, सत्संग और वैराग्य में लगाकर अपनी आत्मा का कल्याण करना चाहिए ताकि आपका जीवन सफल बन सके और मोक्ष की प्राप्ति हो| 

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