Understand the effect or importance of truth from this Hindi story.
एक धर्मात्मा और सत्यवादी राजा रहते थे ,जो हर परिस्थिति में सत्य का अनुसरण किया करते थे| अपनी प्रजा के हित को ध्यान में रखकर राजा में एक सत्य प्रतिज्ञा ली थी| अगर राज्य में कोई भी व्यक्ति कुछ भी बेचने के लिए आये और शाम के समय तक उसकी वह वस्तु न बिके तो राजा उस वस्तु का उचित मूल्य देकर खरीद लेते थे|
एक दिन की बात है राजा की परीक्षा लेने के लिए स्वयं धर्मराज एक दरिद्र व्यक्ति का रूप धारण करके राजा के राज्य में आए| वे अपने साथ बेचने के लिए कूड़ा-करकट बक्से में भरकर लाये और बाजार में जाकर बैठ गए|
लेकिन उनका वह सामान नहीं बिका क्योकि व्यर्थ के सामान को भला कोई क्यों लेगा| जब शाम हो गई तो राजा के सैनिक प्रतिदिन की तरह यह देखने के लिए आये कि बाजार में किन-किन लोगों का सामान नहीं बिका है| तो उनको वह दरिद्र व्यक्ति दिखाई दिया जिसका कुछ भी सामान न बिका था|
सैनिक ने उस दरिद्र व्यक्ति के पास जाकर पूछा - क्या आपका सामान नहीं बिका? उस व्यक्ति ने कहा- नहीं| आप इस बक्से में क्या बेचने के लिए लाए है और उसकी कीमत कितनी है| तो उस व्यक्ति ने अपना बक्सा खोलकर दिखा दिया तथा बोला - इसकी कीमत दो हजार रूपये है|
सैनिक सामान देखकर चकित रह गए और बोले मुर्ख व्यक्ति इस कूड़े-करकट को दो हजार में क्या कोई दो रूपये में भी नहीं खरीदेगा| तो वह बोला - अगर कोई नहीं लेगा तो मैं इसे घी वापस ले जाऊँगा| इस बात की सूचना राजा को दी गई| तो राजा ने कहा- उसे सामान घर मत ले जाने दो ,उचित मूल्य देकर सामान को खरीद लो|
तब राजा के सैनिक राजा की आज्ञा से उस दरिद्र व्यक्ति के पास आये और उसके सामान की कीमत दो सौ रूपये लगाई ,परंतु उस व्यक्ति ने सामान देने से मना कर दिया और बोला - मैं इसे दो हजार रूपये से कम में नहीं दूँगा|
तो सैनिक ने हजार रूपये देने को कहा लेकिन उसने फिर भी सामान देने से मना कर दिया तो सैनिक गुस्सा होकर बोला - इस सामान की कीमत कुछ भी नहीं है फिर भी हम तुम्हे एक हजार रूपये दे रहे है| तो दरिद्र व्यक्ति बोला - अगर आपको मेरा सामान लेना है तो उसका पूरा मूल्य देना पड़ेगा तभी मैं इसे आपको दूँगा|
अब सैनिक फिर से राजा के पास गया और उसे पूरी घटना सुनाई तो राजा ने कहा - अगर वह सामान लेकर घर गया तो मेरी सत्य की प्रतिज्ञा टूट जाएगी ,इसलिए वह जो भी कीमत माँग रहा है उसे दे दो तथा सामान खरीद लो| तब सैनिक ने उस दरिद्र व्यक्ति को दो हजार रूपये देकर उसका बक्सा ले लिया और उसे लेकर राजमहल में आ गए तो राजा ने उसे महल में ही रखवा दिया|
रात के समय जब राजा सोने के लिए अपने कक्ष में आया तो उसने एक बहुत ही सुन्दर स्त्री जो आभूषणों से सुसज्जित थी महल से बाहर की ओर जाते देख और उससे पूछा - आप कौन है? और यहाँ पर किस लिए आयी हो? और किस कारण से जा रही हो?
तब वह सुंदर स्त्री बोली - मैं लक्ष्मी हूँ| आप सत्यवादी धर्मात्मा थे इसलिए मैं आपके महल में निवास करती थी लेकिन अब आपके महल में कूड़ा-करकट आ गया है | इसलिए मैं यहाँ से जा रही हूँ| राजा ने कहा -देवी जैसी आपकी इच्छा|
अब थोड़ी देर बाद राजा ने एक युवक को महल से बाहर जाते देखा तो उससे पूछा - आप कौन है? और कहाँ जा रहे है? तो उस युवक ने जवाब दिया,मैं दान हूँ| जब आपके महल से लक्ष्मी ही चली गई तो मैं यहाँ पर रहकर क्या करूँगा क्योकि बिना लक्ष्मी के आप दान कैसे करोगे| तो राजा बोलै - जैसी आपकी इच्छा|
उसके बाद फिर से एक सुंदर पुरुष महल से बाहर की ओर जाते दिखा तो राजा ने फिर पूछा-आप कौन है? और कहाँ जा रहे है? तो उस पुरुष ने जवाब दिया ,मैं यज्ञ हूँ| जब आपके महल से लक्ष्मी और दान ही चले गए है तो मैं यहाँ कैसे रह सकता हूँ क्योकि बिना लक्ष्मी के यज्ञ कैसे होगा| तो राजा ने कहा - जैसी आपकी इच्छा|
कुछ देर बाद फिर से एक सुंदर पुरुष महल से बाहर की ओर जाते दिखा तो राजा ने फिर पूछा-आप कौन है? और कहाँ जा रहे है? तो उस पुरुष ने जवाब दिया ,मैं यश हूँ| जब आपके महल से लक्ष्मी ,दान ,यज्ञ सब चले गए है तो आपका यश कैसे रह सकता है? इसलिए मैं भी वही जा रहा हूँ, जहाँ सब गए है| तो राजा ने कहा - जैसी आपकी इच्छा|
इसके तुरंत बाद एक ओर दिव्य पुरुष बाहर जाते दिखा तो राजा ने पूछा - आप कौन है? और कहाँ जा रहे है? तब उस दिव्य पुरुष ने उत्तर दिया ,मैं धर्म हूँ और मैं लक्ष्मी ,दान ,यज्ञ और यश के पास जा रहा हूँ| तब राजा ने कहा- आप कैसे जा सकते है मैंने आपके लिए ही इन सब का त्याग किया है ,परंतु आपका त्याग कभी नहीं किया| प्रजा के हित को ध्यान में रखकर ही मैंने सत्य प्रतिज्ञा की थी|
अगर मेरे राज्य में कोई भी व्यक्ति कुछ भी सामान बेचने के लिए लाएगा और शाम के समय तक उसका सामान नहीं बिकेगा तो मैं उसे उचित मूल्य देकर खरीद लूँगा| आज अगर एक दरिद्र व्यक्ति कूड़ा-करकट लेकर आया और मैंने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार उसे खरीद लिया| तो लक्ष्मी ,दान ,यज्ञ और यश सब मुझे छोड़कर चले गए| क्या सत्य की रक्षा का यही फल मिलता है| तो सत्य ने जवाब दिया अगर तुमने मेरे लिए सब का त्याग किया है तो मैं तुम्हे छोड़कर नहीं जा सकता हूँ| सत्य वापस राजमहल के अंदर चला गया| उसके आते ही
एक-एक करके लक्ष्मी ,दान ,यज्ञ ,यश सभी महल वापस लौट आये| यह सब देखकर राजा बहुत प्रसन्न हुआ|
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें किसी भी कठिन परिस्थिति में सत्य का त्याग नहीं करना चाहिए क्योकि अगर आप सत्य को धारण करते है तो लक्ष्मी और यश अपने आप ही आपके पास आ जाता है| सत्य का मार्ग कठिन जरूर है लेकिन आपको सच्ची खुशी देने वाला है इसलिए इसका कभी भी त्याग न करे|
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