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मुख्य नैतिक मूल्य कौन कौन से है? - Ethical Values

आपको नैतिक मूल्य की परिभाषा की अगर उचित जानकारी चाहिए तो इसके लिए आपको श्रीमद भागवत महापुराण अवश्य पढ़ना चाहिए। क्युकी सच्चा धर्म वही है जो आपको नैतिक मूल्य समझाए। और नैतिक मूल्यों की जानकारी आपको पुराणों से बेहतर कही नहीं मिल सकती है। पहले हम समझते है की नैतिक मूल्य है क्या। 

5 मुख्य नैतिक मूल्यों की सूची -

  1. सत्य बोलना
  2. ईमानदारी का पालन करना 
  3. प्रेम करना 
  4. दया दिखाना (करुणा) 
  5. मित्रता निभाना
  6. आत्मरक्षा

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सत्य बोलना - 

सत्य बोलने वाला व्यक्ति हमेशा विश्वास का पात्र बना रहता है। अगर आप सत्य नहीं बोलते है तो आप पर समाज की तो छोडो आपके घर और परिवार के लोग ही आपकी बातो पर विश्वास नहीं करेंगे। जब भी आपको दुसरो की सहायता की जरुरत होगी अन्य लोग आप पर विश्वास नहीं करेंगे। हमारे वेद पुराणों में असत्य बोलना को सबसे बड़ा पाप माना गया है और दुःख का सबसे बड़ा कारण है। जिसमे मनुष्य एक दिन बिलकुल अकेला हो जाता है। जो मनुष्य सत्य का पालन करता है लोग उसको प्यार करते है, उसका मान और सम्मान करते है। जिससे उसका यश बढ़ता है, अन्य सामाजिक लोग उसकी सहायता के लिए हमेशा तत्पर रहते है। अगर मनुष्य के जीवन में कभी कठिनाई आती भी है तो लोगो के सहयोग के कारण वो उसे आसानी से पार कर लेता है। जिसे जीवन का सबसे बड़ा सुख माना गया है। 

ईमानदारी का पालन करना -

सत्य और ईमानदारी एक ही सिक्के के दो पहलु है आप बिना सत्य के ईमानदारी धारण नहीं कर सकते है और बिना ईमानदारी के आप सत्यवादी नहीं हो सकते है। ईमानदार होने से भगवान् भी आपके प्रति ईमानदार हो जाते है। जब भी आपको जरुरत होती है भगवान किसी न किसी रूप में आपकी सहायता करता है। क्युकी ईमानदार व्यक्ति का समाज में बहुत ही मान और सम्मान होता है। उसे यश की प्राप्ति होती है। अगर कोई व्यक्ति ईमानदार नहीं है वो पूर्णतः नास्तिक है। क्युकी वो जानवरो की तरह किसी भी तरह दुसरो का अधिकार रखना चाहता है। ऐसे लोगो को समाज से हमेशा ही बहिष्कृत किया जाता रहा है, जिन्हे नीच बोला जाता है। 

प्रेम करना -

पुराणों के अनुसार भगवान् सिर्फ प्रेम के भूखे है। भोग और प्रसाद भी उन्हें सिर्फ प्रेम स्वरुप चढ़ाया जाता है। क्युकी जब भी हम किसी के घर जाते है तो कुछ न कुछ प्रेम स्वरुप ले जाते है, जैसे सुदामा जब अपने मित्र से मिलने गए थे तो अपने साथ चावल की पोटरी लेकर गए थे। पुराणों के अनुसार प्रेम ही इस जीवन का आधार है। पुराणों के अनुसार मनुष्य को हमेशा देने वाला होना चाहिए लेने वाला नहीं. तभी तो सनातन धर्म के लोग प्रकृति से भी अगर कुछ लेते है तो उसका अभिनन्दन करते है। जैसे नदी से पानी लेना, कुए से पानी लेना, वायु और सूर्य को नमस्कार इत्यादि भी प्रेम का सटीक उदाहरण है। प्रेम का अगर आपको उदाहरण देखना है तो आप मीराबाई का श्री कृष्ण से प्रेम, गोपियो का कृष्ण से प्रेम, सूरदास का गोपाल से प्रेम। 

दया दिखाना (करुणा) -

दया प्रत्येक मनुष्य का आभूषण है। क्युकी अगर इस समाज में प्रत्येक व्यक्ति दयावान बन जाए तो गरीबी ख़त्म हो जाएगी, लोगो पर संकट भी ख़त्म हो जायेगे। आपस में प्रेम उत्पन्न हो जायेगा और कलेश से मुक्ति मिल जाएगी। कोई व्यक्ति अपने स्वाद के लिए किसी की जान नहीं ले सकता, चाहे वो मुर्गी, बकरा, गाय  या मछली हो। जिस धर्म में दया नहीं है उसे आप धर्म कैसे कह सकते है। ये मनुष्यो को किसी भी तरह से शोभा नहीं देता। वैदिक काल में जो भी मनुष्य मांस भक्षण करता था उसे समाज से बहिष्कृत कर दिया जाता था। जिन्हे नीच बोला गया है। इसकी व्याख्या आपको भविष्य पुराण और गरुण पुराण में मिलती है।  और उनसे अछूत का व्यवहार किया जाने लगा।

मित्रता निभाना -

मित्र कैसा होना चाहिए इसके लिए आपको कृष्ण और सुदामा की मित्रता देखनी चाहिए।  और मित्र कैसा नहीं होना चाहिए इसके लिए आपको द्रोणाचार्य और राजा द्रुपद की मित्रता देखनी चाहिए।  जब आप इन दोनों के बारे में पढ़ लेंगे आप आसानी से तय कर सकते है आप किस तरह के मित्र है, और आपको स्वयं के जीवन में किस तरह के मित्र चाहिए। 
मित्र मनुष्य का वो साथी होता है जो बिना किसी लोभ और लालच के, आपके सुख और दुःख का भागी होता है। ये समाज का बहुत ही आवश्यक नैतिक मूल्य है। हमारे पूर्वजो के मुँह से हमने भी एक बात सुनी है जो मित्रता को अच्छी तरह परिभाषित करती है। 
गुरु से कपट और मित्र से चोरी 
के होई निर्धन, के होई कोढ़ी ll 
अर्थात गुरु और मित्र से झूठ बोलने वाला व्यक्ति या तो गरीब हो जाता है या उसे कोढ़ की बीमारी हो जाती है। 

आत्मरक्षा -

आत्मरक्षा सभी नैतिक मूल्यों से ऊपर है, क्युकी जब तक आपका शरीर सुरक्षित तभी आप अन्य नैतिक मूल्यों का पालन कर सकते है और करवा सकते है। अगर आप अपनी और अपने परिवार की आत्मरक्षा भी नहीं कर सकते तो आप खुद सोचिये क्या उनकी रक्षा के लिए भगवान् अवतार लेंगे। उन्होंने आत्मरक्षा का ज्ञान, ताकत, साहस, बुद्धि सभी सामर्थ्य मनुष्य को प्रदान किये है। अब ये मनुष्य का कर्तव्य है की वो अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हटे।  अपने कर्तव्य का पालन करे जब अंतिम साँस रहती है । 
आत्मरक्षा का गुण आत्मविश्वास और साहस से पैदा होता है। - ज्यादा पढ़े


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