To Get the Latest Updates, Do not forget to Subscribe to Us

देवी देवता के फोटो वाली वस्तुएँ भूलकर भी न ख़रीदे?

वैसे तो हम मानव जीवन में आजकल धर्म की जगह बहुत ही कम और अधर्म की बहुत ज्यादा हो गयी है। आजकल अधर्म करना फैशन हो गया है। इस पोस्ट में आज आपको ऐसे एक अधर्म से परिचित करवायुंगा जिसे आप ख़ुशी-ख़ुशी और श्रद्धा के साथ करते है। और पुण्य की जगह पाप अर्जित करते है। 

Today's Values education ( आज की नैतिक शिक्षा) - 

क्या आप बाजार में ऐसी वस्तु खरीदते है जिसमे किसी न किसी देवी देवता की फोटो या छवि होती है?

बिलकुल ! लोग इन वस्तुओ को धड़ल्ले से खरीदते है, अगर न खरीदते तो ये वस्तुए बाजार में प्रचिलित नहीं होती। लेकिन इन वस्तुओं के बाजार में प्रचलित होने का कारण इनकी खरीदारी ही नहीं बल्कि और भी कारण है जिसे में आज आपको अवगत करवायुंगा। 

मान लीजिये आप धार्मिक व्यक्ति या धार्मिक परिवार है, धार्मिक मतलब धर्म को मानते है और ईश्वर में विश्वास रखते है। ये लोग इस सृष्टि में ऋषि मुनियो के बाद आते है। इसे ऐसे समझते है। 

भगवान् श्री हरी (परब्रह्म) >> देवताओ के राजा देवराज श्री इंद्र भगवान् >> 33 कोटि (33 प्रकार) के देवी देवता >> ऋषि मुनि >> धर्म को मानकर कर्म करने वाले मनुष्य (धार्मिक परिवार) >> मलेच्छी पुरुष या परिवार (अधर्मी) >> राक्षस परिवार (अधर्मी)

तो अगर आप धार्मिक परिवार से है तो अधर्मी लोग या राक्षस लोग सबसे पहले आपका धर्म नष्ट करेंगे, जैसे ही आपका धर्म नष्ट होगा आप भी उनकी तरह अधर्मी हो जायेगे। इसकी शुरुआत होती है। बाजार में ऐसी वस्तुए जिनपर हमारे आराध्य देवी देवताओ की छवि होती है। धार्मिक लोग अपनी अज्ञानतावश उन वस्तुओं को खरीदते है। वस्तु इस्तेमाल करते है फिर उस छवि को कचड़े में फेक देते है। 

हर अधर्म की जड़ सिर्फ और सिर्फ अज्ञानता होती है। चूँकि हमारा ज्ञान विशाल है। पर हमारे पास समय नहीं होता उस ज्ञान को ग्रहण करने का, क्युकी माया का प्रभाव इस कदर है की जिंदगी में पैसा कमाना ही सबसे बड़ा धर्म और कर्तव्य मानने लगते है। और फिर अज्ञानतावश खेल शुरू होता है अधर्म का। इसलिए अपने जीवन में श्रीमद भगवद गीता को पढ़ने और समझने का समय अवश्य निकाले, नहीं तो जैसे आप श्रीमद भगवद गीता को इगनोर करते है वैसे  ही आपके बच्चे या पीढ़ियां इग्नोर करेगी। चाहे तो अनाथ आश्रम जाकर देख लो और मिल लो उन वृद्धजनों से। 


तो धर्म क्या है?

धर्म की व्याख्या किसी पूजा पाठ, प्रार्थना या स्तुति नहीं है। बल्कि धर्म की व्याख्या प्रत्येक व्यक्ति की अपनी अपनी होती है। मनुष्य जीवन में अपना-अपना कर्तव्य पालन ही सबसे बड़ा धर्म है। जो चीज़ खुद को अच्छी न लगे वह दुसरो के साथ न करे वो ही सबसे बड़ा धर्म है। जब हम किसी की भलाई के लिए निष्काम कर्म करते है वो धर्म है। जहाँ स्वार्थ आ जाता है वो अधर्म है। जब हम अपना धर्म किसी दूसरे पर थोपते है तो धर्म नहीं कट्टरता है। 

सत्य से परिचय -


देवी देवता के फोटो वाली वस्तुएँ ख़रीदे या नहीं? अब आप ये प्रश्न अपने आप से पूछिए की अगर आपके माता पिता की फोटो किसी वस्तु में लगा दी जाए, तो क्या आप उसे खरीदेंगे? हो सकता है आप प्रेमवश या अज्ञानता वश खरीद भी ले, अब खरीदने के बाद, तो क्या आप उस वस्तु को इस्तेमाल करने के बाद आप अपने माता पिता की फोटो को कचड़े में फेकेंगे, नाली में डालेंगे, उस फोटो को पटाखे में चिपकाकर उसके टुकड़े टुकड़े करेंगे?
देवी देवता के फोटो वाली वस्तुएँ भूलकर भी न ख़रीदे



अब यहाँ पर आप किसी चुनेगे, क्या ये करना सही है या गलत ये आपके लिए धर्म और किसी के लिए अधर्म होगा। इसलिए ज्ञान के नेत्र खोले और मलेच्छियों के इस प्रकार के अधर्म से दूर रहे। 

दिवाली की दिन आप घर के अंदर श्री राम, श्री कृष्ण और लक्ष्मी माता की पूजा करते है, उनसे प्रार्थना करते है कृपा, सुख और समृद्धि की। फिर पूजा समाप्त होने के बाद आप उनकी फोटो लगे पटाखे में उनका कितना अनादर करते है। पूजा से ज्यादा आप पाप अर्जित  करते है, फिर सोचते है की उनकी कृपा नहीं हुयी। 
प्रभु तो दयालु है, आपकी इस धूर्तता को न देखते हुए फिर भी कृपा रखते है। लेकिन अधर्म तो अधर्म होता है। भगवन अधर्मी का साथ कैसे दे सकते है और कब तक। 

अंत आप खुद और अपने परिवार को इस सत्य से अवगत कराये और कितनी भी जरुरत क्यों न हो, उस वस्तु को न ख़रीदे जिसमे हमारे परमात्मा का अनादर हो रहा हो। यहाँ तक की उन नीच या मलेच्छी लोगो से भी दूर रहना चाहिए या विरोध करना चाहिए जो पेशाब से बचने के लिए भगवान् की छवि वाली प्लेट दीवार में लगवाते है। 


नैतिक शिक्षा वह साधन है जिसके द्वारा लोग दूसरों में नैतिक मूल्यों या आदर्शो का संचार करते हैं। यह कार्य घर, विद्यालय, मन्दिर, जेल, मंच या किसी सामाजिक स्थान (जैसे पंचायत भवन) में किया जा सकता है|

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ