भारत देश में बहुत सी युद्ध कलाएँ है ,जो प्राचीनकाल
से चली आ रही है| जो उस समय बहुत लोकप्रिय हुआ करती थी। इनमे से बहुत सी युद्ध
कलाएँ कही विलुप्त सी हो गई है और कुछ ने अपना स्वरूप बदल लिया है ,और एक नये
अंदाज में सबके सामने उभर कर आयी है| आज हम आपको प्राचीन काल की उन्ही 10 प्रमुख
युद्ध कलाओं के बारे में बताने जा रहे हैं। जिसकी जानकारी बहुत कम लोगों को है। ये
प्राचीन युद्ध कलाएं विभिन्न विशेषताओं के साथ विभिन्न राज्यों में आज भी अपने
अस्तित्व को बनाए हैं।
भारत
की 10 प्रमुख प्राचीन युद्ध कलाओं के नाम -
1.
बोथाटी : भाले को मराठी में बोथाटी कहते है। इस
युद्ध कला में एक व्यक्ति घोड़े पर बैठकर भाले से दुसरे व्यक्ति पर प्रहार करता है।
यह पहले मराठों की सबसे पुरानी युद्ध कला हुआ करती थी। लेकिन बाद में इसने एक खेल
का रूप ले लिया।
2.
इन्बुआन : यह युद्ध कला 1750 में मिजोरम के ‘डुंगटलांग’
नामक गांव में पैदा हुई थी। यह कुश्ती के सामान ही है जो 2 लोगों के बीच खेला जाता
है| लेकिन इसके नियम कुछ अलग है जैसे एक प्रतियोगी दुसरे प्रतियोगी को पैर नहीं
मार सकता है , धक्का नहीं दे सकता है ,कोई घुटने नहीं झुका सकता
है| जो प्रतियोगी किसी दुसरे प्रतियोगी को अपने हाथों ऊपर उठा लेता है
वही विजयी होता है|
3.
गतका: गतका पंजाब में सिखों की पारंपरिक युद्ध कला
है। इस कला का प्रदर्शन सिखों के द्वारा उनके धार्मिक त्यौहारों पर किया जाता है।
यह युद्ध कला लकड़ी की छड़ी या तलवार से करतव दिखा कर प्रदर्शित की जाती है। इस
कला को जीवित रखने के लिए गतका फेडरेशन को 1987 में अनौपचारिक रूप से स्थापित किया
गया था।
4.
कुट्टू वरिसाई : दक्षिण भारत के तमिलनाडु और पूर्वी
श्रीलंका में यह कला बहुत लोकप्रिय है। यह कला कराटे जैसी होती है। इसमें किसी भी
तरह के शास्त्र का प्रयोग नहीं किया जाता है बल्कि हाथों और पैरों का इस्तेमाल ही घातक
हथियार की तरह किया जाता है।
5.
कल्लारिपयट्टु : कल्लारिपयट्टु केरल की एक बहुत ही लोकप्रिय
युद्ध कला है। जिसे मार्शल आर्ट भी कहा जाता है। यह बोधिधर्म द्वारा पूरे विश्व
में मार्शल आर्ट के रूप में लोकप्रिय है। यह कला आत्मरक्षा के लिए सीखी जाती है।
वर्तमान में इस कला का बहुत ही क्रेज है| हर कोई इसे सीखना चाहता है चाहे वह लड़का
हो या लड़की|
6.
मुकना : मुकना मणिपुर की सबसे प्राचीन युद्ध कला
है। यह कुश्ती की तरह ही प्रदर्शित की है लेकिन इसमें किक, स्ट्रोक और पंच
का उपयोग किए बिना ही अपने प्रतिद्वंद्वी को हराना होता है। इस युद्ध कला का
प्रदर्शन मणिपुर के पारंपरिक त्योहार "हरोबा" के अंतिम दिन किया जाता
है।
7.
नियुद्ध : नियुद्ध एक हज़ार साल पुरानी युद्ध
कला है। इसके जनक भगवान शिव हैं। इस कला में यह सीखा जाता है कि बिना हथियारों के
आत्मरक्षा कैसे की जाती है। इसमें केवल हाथ व पैर से ही प्रहार किया जाता है| युद्ध
की यह कला दक्षिण भारत में सबसे ज्यादा प्रचलित है|
8.
कुश्ती : कुश्ती युद्ध की एक बहुत प्राचीन कला
है। वेदों और पुराणों में भी इसका उल्लेख किया गया है। अब यह युद्ध कला एक खेल बन
गया है जो पूरी दुनिया में खेला जाता है। यह 2 लोगों के बीच खेला जाने वाला खेल है,
जिसमें
बहुत अधिक शारीरिक बल की आवश्यकता होती है|
9.
वरमा कलाई : वरमा कलाई तमिलनाडु की पारंपरिक कला
है। इस कला में, अपने प्रतिद्वंद्वी को उसके शरीर के मर्म भागों
पर हमला करके मारा जा सकता है। या फिर उसके प्राण भी लिए जा सकते है|
10.
वज्र मुष्टि : वज्र मुश्ती दक्षिण भारत की कला है।
इस कला में अपने प्रतिद्वंद्वी के साथ हाथी के दाँत या भैंस के सींग से बनी मुष्टिका
पहनकर लड़ता जाता है।
इन युद्ध कलाओं के अलावा भी बहुत सी युद्ध कलाए हमारे देश में आज भी
मौजूद है| जिनकी पहचान धुंधली सी पड़ गई है| कुछ युद्ध कलाओं को तो लोगों ने अपना
लिया है लेकिन कुछ युद्ध कलाएँ विलुप्त सी होती जा रही है, जो कभी हमारी संस्कृति
की पहचान हुआ करती थी| इस देश का नागरिक होने के नाते हम सबका यह कर्त्तव्य है कि
हम अपनी प्राचीनकाल की संस्कृतिक व पारंपरिक युद्ध कलाओं को कभी भी समाप्त न होने
दे| ताकि आने वाली हर पीढ़ी इसे ग्रहण कर सके|
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