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जानिए हिडिम्बा देवी और भीम की कहानी जो आज भी जीवित है

महाभारत विश्व का सबसे बड़ा साहित्यिक ग्रंथ और हिन्दुओं का एक प्रमुख काव्य ग्रंथ है, जो स्मृति वर्ग में आता है। यह कृति प्राचीन भारत के इतिहास की एक गाथा है। इसी में हिन्दू धर्म का पवित्रतम ग्रंथ भगवद्गीता सन्निहित है। पूरे महाभारत में लगभग १,१०,००० श्लोक हैं[

खैर आज हम इसी महाभारत के एक ऐसे पात्र से मिलवाते है जिसका बलिदान और त्याग भारतवर्ष कभी नहीं भूलेगा. सम्मान सहित उनका नाम है देवी हिडिंमा। आइये जानते है की देवी हिडिंमा का महाभारत में क्या पात्र था, कहा रहती थी और क्या थी और आज वो जगह कहाँ पर है.

हडिम्बा देवी मंदिर की महाभारत कालीन इतिहास या कहानी Hadimba Temple History :

महाभारत काल में वनवास के समय जब पांडवों का घर (लाक्षागृह) जला दिया गया था तो विदुर के परामर्श पर वे वहां से भागकर एक दूसरे वन में गए (आज वहां कुल्लू, मनाली नाम की जगह है), जहाँ पीली आँखों वाला हिडिंब राक्षस अपनी बहन हिंडिबा के साथ एक गुफा में रहता था। सयोंग से पांडव उस वन में विश्राम के लिए उसी गुफा के आसपास रुके, और मानवों का गंध मिलने पर उसने पाण्डवों को पकड़ लाने के लिये अपनी बहन हिडिंबा को भेजा ताकि वह उन्हें अपना आहार बना कर अपनी क्षुधा पूर्ति कर सके। वहां हिंडिबा ने पाँचों पाण्डवों सहित उनकी माता कुन्ति को देखा। और उन्हें मारने के लिए दौड़ी, सभी भाई और माता कुंती गहरी निद्रा में थी, और भीम पहरेदारी कर रहे थे, भीम ने जैसे ही आहट सुनी और देखा की एक राक्षसी अपने हाथ में कटार लिए दौड़ी आ रही है, तो भीम ने उसे रोका, और पूछा।
भीमसेन ने उससे पूछा, "हे सुन्दरी! तुम कौन हो और रात्रि में इस भयानक वन में अकेली क्यों घूम रही हो?" भीम के प्रश्न के उत्तर में हिडिम्बा ने कहा, "हे नरश्रेष्ठ! मैं हिडिम्बा नाम की राक्षसी हूँ।
हिंडिबा - मानव ! में देवी नहीं राक्षसी हु, में नर मांस खाती हु, मेरे भाई ने मुझे भोजन ढूढ़ने के लिए भेजा है, ये मेरा राक्षसी धर्म है की में आप सबको मारकर भोजन की व्यवस्था करू.
भीम - (सोचते हुए की अगर में युद्ध करूँगा तो स्त्री से युद्ध करना शोभा नहीं देता और मेरे भाइयों और माता की नीद में भी खलल पड़ेगा. कुछ करना होगा) हे देवी बिलकुल आप सही है, लेकिन में बस इतना जानना चाहता हु की इतनी सूंदर होकर भी आप ऐसे वन में कैसे रहती हो, कभी खुद को देखा है. इस रूप की ऐसी दशा?
हिंडिबा - मेरे भाई ने मुझे आप लोगों को पकड़ कर लाने के लिये भेजा है किन्तु मेरा हृदय आप पर आसक्त हो गया है तथा मैं आपको अपने पति के रूप में प्राप्त करना चाहती हूँ। मेरा भाई हिडिम्ब बहुत दुष्ट और क्रूर है किन्तु मैं इतना सामर्थ्य रखती हूँ कि आपको उसके चंगुल से बचा कर सुरक्षित स्थान तक पहुँचा सकूँ।"
भीम इस तरह से उसको समझाते और बहलाते है और हिंडिबा भी भीम की बातों और रूप पर मोहित हो जाती है. भीम को भी इस राक्षसी  को देखते ही उससे प्रेम हो गया इस कारण इसने उन सबको नहीं मारा

इधर अपनी बहन को लौट कर आने में विलम्ब होता देख कर हिडिम्ब उस स्थान में जा पहुँचा जहाँ पर हिडिम्बा भीमसेन से वार्तालाप कर रही थी। हिडिम्बा को भीमसेन के साथ प्रेमालाप करते देखकर वह क्रोधित हो उठा और हिडिम्बा को दण्ड देने के लिये उसकी ओर झपटा। यह देख कर भीम ने उसे रोकते हुये कहा, "रे दुष्ट राक्षस! तुझे स्त्री पर हाथ उठाते लज्जा नहीं आती? यदि तू इतना ही वीर और पराक्रमी है तो मुझसे युद्ध कर।" इतना कह कर भीमसेन ताल ठोंक कर उसके साथ मल्ल युद्ध करने लगे। कुंती तथा अन्य पाण्डव की भी नींद खुल गई। वहाँ पर भीम को एक राक्षस के साथ युद्ध करते तथा एक रूपवती कन्या को खड़ी देख कर कुन्ती ने पूछा, "पुत्री! तुम कौन हो?" हिडिम्बा ने सारी बातें उन्हें बता दी।

अर्जुन ने हिडिम्ब को मारने के लिये अपना धनुष उठा लिया किन्तु भीम ने उन्हें बाण छोड़ने से मना करते हुये कहा, "अनुज! तुम बाण मत छोडो़, यह मेरा शिकार है और मेरे ही हाथों मरेगा।" इतना कह कर भीम ने हिडिम्ब को दोनों हाथों से पकड़ कर उठा लिया और उसे हवा में अनेक बार घुमा कर इतनी तीव्रता के साथ भूमि पर पटका कि उसके प्राण-पखेरू उड़ गये।

हिडिम्ब के मरने पर वे लोग वहाँ से प्रस्थान की तैयारी करने लगे, इस पर हिडिम्बा ने कुन्ती के चरणों में गिर कर प्रार्थना करने लगी, "हे माता! मैंने आपके पुत्र भीम को अपने पति के रूप में स्वीकार कर लिया है। आप लोग मुझे कृपा करके स्वीकार कर लीजिये। यदि आप लोगों ने मझे स्वीकार नहीं किया तो मैं इसी क्षण अपने प्राणों का त्याग कर दूँगी।" हिडिम्बा के हृदय में भीम के प्रति प्रबल प्रेम की भावना देख कर युधिष्ठिर बोले, "हिडिम्बे! मैं तुम्हें अपने भाई को सौंपता हूँ किन्तु यह केवल दिन में तुम्हारे साथ रहा करेगा और रात्रि को हम लोगों के साथ रहा करेगा।" हिडिंबा इसके लिये तैयार हो गई और भीमसेन के साथ आनन्दपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगी। एक वर्ष व्यतीत होने पर हिडिम्बा का पुत्र उत्पन्न हुआ। उत्पन्न होते समय उसके सिर पर केश (उत्कच) न होने के कारण उसका नाम घटोत्कच रखा गया। वह अत्यन्त मायावी निकला और जन्म लेते ही बड़ा हो गया।

हिडिम्बा ने अपने पुत्र को पाण्डवों के पास ले जा कर कहा, "यह आपके भाई की सन्तान है अतः यह आप लोगों की सेवा में रहेगा।" इतना कह कर हिडिम्बा वहाँ से चली गई। घटोत्कच श्रद्धा से पाण्डवों तथा माता कुन्ती के चरणों में प्रणाम कर के बोला, "अब मुझे मेरे योग्य सेवा बतायें।? उसकी बात सुन कर कुन्ती बोली, "तू मेरे वंश का सबसे बड़ा पौत्र है। समय आने पर तुम्हारी सेवा अवश्य ली जायेगी।" इस पर घटोत्कच ने कहा, "आप लोग जब भी मुझे स्मरण करेंगे, मैं आप लोगों की सेवा में उपस्थित हो जाउँगा।" इतना कह कर घटोत्कच वर्तमान उत्तराखंड की ओर चला गया। हिडिम्बा ने महाभारत के युद्ध में अपने पुत्र घटोत्कक्ष एवं नाती बर्बरीक का बलिदान कर दिया और खुद अकेले जंगल में जीवन व्यतीत किया.

आज कहाँ है वो हिडिम्बा देवी की गुफा या मंदिर (Hadimba Devi Temple History in Hindi) - 
हिडिंबी देवी मंदिर, जिसे हदीम्बा मंदिर के रूप में भी जाना जाता है, उत्तर भारत के हिमाचल प्रदेश के एक पहाड़ी स्टेशन मनाली में स्थित है। यह हिडिंबी देवी को समर्पित एक प्राचीन गुफा मंदिर है.
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 नवरात्रि के दौरान देश भर में सभी हिंदू देवी दुर्गा की पूजा करते हैं, लेकिन मनाली के लोग हिडिम्बा देवी की पूजा करते हैं। मंदिर के बाहर लोगों की कतार देखी जा सकती है, लेकिन नवरात्रि के दौरान भीड़ बढ़ जाती है
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हिडिम्बा देवी मंदिर में जटिल लकड़ी के दरवाजे और 24 मीटर लंबा लकड़ी "शिखर" या अभयारण्य के ऊपर टावर है। मंदिर में लकड़ी की टाइलें और चौथा पीतल शंकु के आकार की छत के साथ तीन स्क्वायर छत शामिल हैं। मंदिर का आधार मिट्टी से ढके पत्थर के काम से बना है। मंदिर के अंदर एक विशाल चट्टान पर देवी हिडिम्बा देवी का 7.5 सेमी (3 इंच) लंबी पीतल की छवि है। एक रस्सी चट्टान के सामने लटकती है, और एक पौराणिक कथा के अनुसार, कहा जाता है की पापी व्यक्ति को वो रस्सी मंदिर से दूर रहने के लिए इशारा करती है. रस्सी द्वारा "पापियों" के हाथों को बांध देगा और फिर उन्हें चट्टान के खिलाफ स्विंग करेगा।

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