नैतिक शिक्षा हर देश में अलग-अलग होती है। नैतिकता एक व्यक्ति के सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और ऐतिहासिक परिवेश से प्रभावित होती है। हर देश अपनी संस्कृति, धर्म, इतिहास, समाज और अन्य तत्वों के आधार पर अपनी नैतिक मूल्यों को विकसित करता है जो उसके लोगों के जीवन में एक अहम भूमिका निभाती है।
Does moral education differ from country to country?
इसलिए, अलग-अलग देशों में नैतिकता की परिभाषा, मानक और मूल्यों में अंतर होता है। उदाहरण के लिए, कुछ देशों में धर्म का बहुत अधिक महत्व होता है और लोगों को अपनी धर्म के अनुसार जीना सिखाया जाता है। वहीं, कुछ अन्य देशों में वैज्ञानिक विचार और आधुनिक नैतिकता के मूल्यों को अधिक महत्व दिया जाता है।
इसलिए, नैतिकता का अर्थ और महत्व हर देश में अलग होता है और इसे उस देश की स्थानीय संस्कृति, परंपरा और इतिहास से समझना बेहद आवश्यक होता है।
नैतिक शिक्षा का सिद्धांत -
नैतिक शिक्षा का सिद्धांत यह है कि हमें सही और गलत के बीच अंतर को समझना चाहिए और सही को अपनाना चाहिए। नैतिकता के सिद्धांत का मूल उद्देश्य एक समरस और सद्भावना से भरी समाज की स्थापना करना होता है जहां लोग एक दूसरे के साथ न्यायपूर्ण और ईमानदारी से व्यवहार करते हैं।
नैतिक शिक्षा के सिद्धांत में नैतिक मूल्यों, सम्मान, स्वाभाविक अधिकार, न्याय और इंसानियत को महत्वपूर्ण माना जाता है। सिद्धांतों के अनुसार, हमें संबंधों में सदा सत्यता, सम्मान, ईमानदारी, सहानुभूति, सामंजस्य और न्याय के साथ व्यवहार करना चाहिए।
नैतिकता का सिद्धांत हमें दूसरों की भावनाओं, महत्व और आवश्यकताओं का समझना और समझाना सिखाता है। इससे हमें संबंधों में विश्वास, समझौता और सहयोग का विकास होता है जो अंततः एक खुशहाल समाज का निर्माण करता है।
तो फिर कोहलबर्ग का सिद्धांत? -
कोहलबर्ग का सिद्धांत नैतिक शिक्षा के महत्व को बताता है और इसके अनुसार नैतिकता संबंधित सभी कार्यों में शामिल होनी चाहिए। इस सिद्धांत के अनुसार, नैतिकता को सिर्फ धार्मिक या मौलिक तत्वों से ही नहीं जोड़ा जाना चाहिए, बल्कि यह समस्त मानवीय गतिविधियों में जोड़ी जानी चाहिए।
भारतीय परंपरा में नैतिक शिक्षा का महत्व माना जाता है। भारतीय संस्कृति वेदों, उपनिषदों, धर्मग्रंथों, शिलालेखों, इतिहास और पुराणों के माध्यम से नैतिक शिक्षा के सिद्धांतों को समझाती है। आप चाहे तो शास्त्रों में योग वशिष्ठ और महापुरुषों में स्वामी विवेकानंद की कर्मयोग अन्य अन्य किताब को पढ़ सकते है जिसमे दी गयी नैतिकता की शिक्षा विलक्षण है ।
हाँ, कोहलबर्ग का सिद्धांत भारतीय शिक्षा के अनुसार सही हो सकता है। क्युकी नैतिकता को समस्त गतिविधियों में जोड़ा जाना चाहिए ताकि छात्रों को संबंधों में सही और गलत के बीच अंतर को समझने में मदद मिल सके। लेकिन अगर कोई कहता है कि सिर्फ कोहलबर्ग का सिद्धांत ही अकेला नैतिक शिक्षा का महत्व बताता है तो ये सोच कदापि सही नहीं है।
उससे पहले हमारे भारतीय पूर्वज किसी भी विदेशियों से अच्छे-अच्छे सिद्धांत नैतिकता पर दे चुके है। क्योंकि नैतिक शिक्षा हर देश में अलग-अलग वहां के धार्मिक लोगो के अनुसार होती है, नैतिक शिक्षा को धार्मिक शिक्षा से पृथक नहीं किया जा सकता।
नास्तिकवाद में ज्यादातर लोग नैतिकता को एक बंधन या बेड़ी समझते है, क्युकी बचपन से ही धर्म की जगह स्वार्थ की भक्ति करते है। लेकिन वास्तव में नास्तिकवाद का धर्म से अलग होने का मतलब यह नहीं है कि वह नैतिकता को अस्वीकार करता है।
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